*अंध विश्वास*
सो रहा विश्वास अंधा
बुद्धि पर भी धुंध छाई।
मिर्च नींबू थक रहे हैं
द्वार पर कबसे टँगे हैं
डूबता व्यापार डाँटे
अब यहाँ ये क्यों लगे हैं
बाजुओं का बोलता दम
फिर निडरता जीत पाई।
मार्ग बिल्ली का कटा जो
वह अशुभ ले बैठती है
कोसती रहती मनुज को
बात क्या ये पैठती है
छींक को पानी पिलाकर
शुभ घड़ी सबने बनाई।।
शल्य होता अब जरूरी
धर्म अंधा आँख पाए
टोटके का मंत्र मारो
रात भी फिर मुस्कुराए
नींद से अब जागती सी
ये सुबह नव रीत लाई।।
अनिता सुधीर
अवैज्ञानिक अंधविश्वासों से समाज जितनी द्रुतता और तीव्रता से मुक्ति पा सके, उतना ही शुभ और माँगलिक!!! बहुत अच्छी कविता!!!!
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२०-०५-२०२२ ) को
'कुछ अनकहा सा'(चर्चा अंक-४४३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभ्गर
Deleteअंधविश्वास पे सटीक प्रहार। बधाई
ReplyDelete👍👍
Deleteवाह ! बहुत प्रगतिशील विचार !
ReplyDeleteहमारे अंधविश्वासों ने हमको सदियों पीछे ढकेल दिया है.
हार्दिक आभार आ0
Deleteवाह!क्या बात है ,बहुत खूब !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteजिनकी दुकाने इन्हें टोने -टोटकों पर चलती हैं वे कहाँ बंद होने देते हैं इन अंधविश्वासों को, और लोग भी कहाँ मानते-सुनते ऐसी बातों को , जिस दिन लोग जागरूक जाएंगे उस दिन इनकी दुकाने बंद .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteअंधविश्वासों पर प्रहार करता सटीक नवगीत।
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन।
हार्दिक आभार आ0
Deleteवैसे बिल्ली भी कहती होगी कि आज आदमी ने रास्ता काट दिया ।
ReplyDeleteबढ़िया कटाक्ष ।
हार्दिक आभार आ0
Deleteसमाज को बहुत जरूरत है नव वैचारिकी आडंबरमुक्त आह्वान की।
ReplyDeleteबहुत सशक्त अभिव्यक्ति।
सादर।
उत्कृष्ट नवगीत🙏
ReplyDeleteप्रभावी एवं सार्थक शब्द।
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद
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