तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Thursday, May 19, 2022

अंधविश्वास

 



*अंध विश्वास*

सो रहा विश्वास अंधा

बुद्धि पर भी धुंध छाई।


मिर्च नींबू थक रहे हैं 

द्वार पर कबसे टँगे हैं

डूबता व्यापार डाँटे

अब यहाँ ये क्यों लगे हैं

बाजुओं का बोलता दम

फिर निडरता जीत पाई।


मार्ग बिल्ली का कटा जो

वह अशुभ ले बैठती है

कोसती रहती मनुज को

बात क्या ये पैठती है

छींक को पानी पिलाकर

शुभ घड़ी सबने बनाई।।


शल्य होता अब जरूरी

धर्म अंधा आँख पाए

टोटके का मंत्र मारो

रात भी फिर मुस्कुराए

नींद से अब जागती सी 

ये सुबह नव रीत लाई।।


अनिता सुधीर

19 comments:

  1. अवैज्ञानिक अंधविश्वासों से समाज जितनी द्रुतता और तीव्रता से मुक्ति पा सके, उतना ही शुभ और माँगलिक!!! बहुत अच्छी कविता!!!!

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२०-०५-२०२२ ) को
    'कुछ अनकहा सा'(चर्चा अंक-४४३६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभ्गर

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  3. अंधविश्वास पे सटीक प्रहार। बधाई

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  4. वाह ! बहुत प्रगतिशील विचार !
    हमारे अंधविश्वासों ने हमको सदियों पीछे ढकेल दिया है.

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  5. वाह!क्या बात है ,बहुत खूब !

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  6. जिनकी दुकाने इन्हें टोने -टोटकों पर चलती हैं वे कहाँ बंद होने देते हैं इन अंधविश्वासों को, और लोग भी कहाँ मानते-सुनते ऐसी बातों को , जिस दिन लोग जागरूक जाएंगे उस दिन इनकी दुकाने बंद .. अच्छी प्रस्तुति

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  7. अंधविश्वासों पर प्रहार करता सटीक नवगीत।
    अप्रतिम सृजन।

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  8. वैसे बिल्ली भी कहती होगी कि आज आदमी ने रास्ता काट दिया ।
    बढ़िया कटाक्ष ।

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  9. समाज को बहुत जरूरत है नव वैचारिकी आडंबरमुक्त आह्वान की।
    बहुत सशक्त अभिव्यक्ति।
    सादर।

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  10. उत्कृष्ट नवगीत🙏

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  11. प्रभावी एवं सार्थक शब्द।

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