तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Sunday, May 29, 2022

गीतिका


गीतिका

मानव हृदय विचार, समझना दूभर है।

बात- बात पर रार, समझना दूभर है।।


प्रेम अनोखी नीति, त्याग की निष्ठा की

जीत कहें या हार, समझना दूभर है।।


रखे दोहरी नीति, मुखौटा पहने  सब

अजब जगत व्यापार, समझना दूभर है।।


देश-प्रेम अनमोल, भाव यह सर्वोपरि

बनते क्यों गद्दार, समझना दूभर है।।


बढ़ा मनुज का लोभ, कर्म भी दूषित अब

झेले क्यों संसार , समझना दूभर है।।


संस्कृति पर आघात, सहे जीवन जीता

कहाँ धनुष टंकार, समझना दूभर है।।


हृदय प्रेम की डोर, उलझती ही जाती 

ढीला क्यों आधार ,समझना दूभर है।।


सत्य हुआ जब मौन, न्याय भी चुप बैठा

छपे झूठ अखबार, समझना दूभर है।।


कम होते संवाद, मूल्य कम रिश्तों का

किसे कहें परिवार, समझना दूभर है।।


अनिता सुधीर


4 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 30 मई 2022 को 'देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के' चर्चा अंक 4446 पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete