भवन की फसल अब धरा पर खड़ी है।
मही ओढ़ मुख को व्यथा से पड़ी है।।
सदा वृक्ष शृंगार भू का बढाए
जगत संपदा भी इन्हीं से जड़ी है।।
इसी भाँति कटते रहे जो विटप सब
मनुज भूल की फिर सजा भी बड़ी है।।
प्रभावित हुआ जैव मंडल हमारा
बढ़ी जीव की अब अपेक्षा अड़ी है।।
प्रदूषण बढ़ा व्याधि बढ़ती रही नव
विदोहन कपट दृष्टि जब से गड़ी है।।
जटिल ये समस्या समाधान माँगे
हृदय वेदना द्वंद्व से नित लड़ी है।।
चलो पौध कुछ रोप आएँ धरा पर
मृदा बाँधने की यही शुभ घड़ी है।।
अनिता सुधीर आख्या
चित्र गूगल से साभार
ATI sunder
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteसादर आभार आ0
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आ0
Deleteजटिल ये समस्या समाधान माँगे
ReplyDeleteहृदय वेदना द्वंद्व से नित लड़ी है।।
चलो पौध कुछ रोप आएँ धरा पर
मृदा बाँधने की यही शुभ घड़ी है।।
बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश
सादर आभार आ0
Deleteवृक्षारोपण करना बहुत ज़रूरी । सार्थक रचना ।
ReplyDeleteसादर आभार आ0
Deleteमृदा बाँधने की यही शुभ घड़ी है।।
ReplyDelete......सुन्दर सार्थक सन्देश
सही संदेश। उत्तम सृजन
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