मुक्तक
कड़ा परिश्रम दिन भर करके,चार टके घर को लाया।
बोझ देखता जब कंधों पर,माथा उसका चकराया।।
चला शौक से मदिरालय फिर,घरवाली को धमकाया।
पल भर का आनंद मिला जो,खुशियां गिरवी रख आया।।
भीड़ बढ़ी मदिरालय में अब,काल आधुनिक आया है।
मातु पिता सँग बच्चे पीते,संस्कृति को बिसराया है।।
प्रेम रोग का बना बहाना,मन का दर्द मिटाया है।
अर्थ व्यवस्था टिकी इसी पर,शासन ने बिकवाया है ।।
अनिता सुधीर आख्या
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 29 जुलाई 2022 को 'भीड़ बढ़ी मदिरालय में अब,काल आधुनिक आया है' (चर्चा अंक 4505) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
सादर आभार
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