पावन मंच को नमन
गीत
श्रावणी की दिव्यता से
खिल उठी सूनी कलाई।।
त्याग तप के सूत्र ने जब
इंद्र की रक्षा करी हो
या मुगल के शुभ वचन से
आस की झोली भरी हो
नेग मंगल-कामना में
थी छिपी सबकी भलाई।।
श्रावणी...
रेशमी-सी प्रीति करती
आज ये व्यापार कैसा
बंधनों के मूल को अब
सींचता है नित्य पैसा
मर्म धागे का समझना
बात राखी ने चलाई।।
श्रावणी.…
हों सुरक्षित भ्रातृ अपने
प्रार्थना यह बाँध आएँ
सरहदों पर उन अकेले
भाइयों के कर सजाएँ
भारती का मान तुमसे
हर परिधि तुमने निभाई।।
श्रावणी...
अनिता सुधीर आख्या
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