नवगीत
फुनगी पर जो
बैठे नंद।
नव पीढ़ी के
गाते छंद।।
व्यथा नींव की
सहती मोच
दीवारों पर
चिपकी सोच
अक्ल हुई अब
डिब्बा बंद।।
ऊँचे तेवर
थोथे लोग
झूम रहे तन
मदिरा भोग
उलझे धागे
जीवन फंद।।
चढ़ा मुलम्मा
छोड़े रंग
बेढंगी ने
जीती जंग
आजादी की
मचती द्वंद्व।।
मर्यादा की
बहकी चाल
लज्जा कहती
अपना हाल
आभूषण अब
पहनें चंद।।
अनिता सुधीर
उफ्फ्फ maza aagaya padhkar. सटीक लेकिन फ़िर भी मधुर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर रचना आपकी
ReplyDeleteसादर आभ्गर
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आ0
Deleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
let's be friend