पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।
सात जन्म के प्यार को ,
बाँधा तेरे साथ
रचा प्रेम अनुभूतियाँ
थामा प्रियतम हाथ
बंधन जन्मों का रहे
मधुरिम प्रणय पुनीत।
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।
पीहर से पी-घर चली,
स्वप्न सुनहरे बाँध
मन मंदिर में साजना
मिले तुम्हारा काँध
प्रेम-कवच विश्वास का
संबंधों की जीत
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।
प्रेम सरिस दूजा नहीं
यही प्रणय का सार
हृदय प्रेम परिपूर्णता
सजा सकल संसार
मन कोयल-सा कूकता
अंग-अंग संगीत।
पावन परिणय में बँधे
साथ चले मनमीत।।
अनिता सुधीर आख्या
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन दीदी 👌👌❤❤
ReplyDeleteसादर आभार
ReplyDeleteधन्यवाद सरोज जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर , सामयिक और सार्थक👍👍
ReplyDeleteप्रेम सरिस दूजा नहीं
ReplyDeleteयही प्रणय का सार
हृदय प्रेम परिपूर्णता
सजा सकल संसार
जीवन के मर्म को समझाती सुंदर पंक्तियाँ
वाह! बहुत सुंदर।
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