समान्त 'आत'
पदांत 'में'
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हँसे खेत खलिहान सब,इस मौसम बरसात में।
पाकर प्रेम फुहार को,भीगे भाव प्रपात में।।
चूल्हा सीला देखता,कब उसमें भी आग हो
जब निर्धन की झोपड़ी,टप-टप टपके रात में।।
बसी गृहस्थी कोसती,ऋतु भर की अति वृष्टि को
मनुज कमाई डूबती, मौसम के आघात में।।
सुन ध्वनि दादुर मोर की,धँसी सड़क यह सोचती।
दुर्घटना कब तक बचे, सुख दुख के आयात में।।
नित पानी में तैरता,दावा क्षेत्र विकास का
बंद पड़ी हैं नालियाँ, सरकारी उत्पात में।।
वृक्षारोपण अब करें, रोकें नद्य जमाव को।
पूरी हो परियोजना, देरी क्यों हो बात में।।
क्लांत नीतियाँ हो व्यथित,समाधान को ढूँढ़तीं
पावस कब लेकर चले, जीवन सुखद प्रभात में।।
अनिता सुधीर आख्या
Very nice 🙏
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteसादर आभार सखी
ReplyDeleteवाह ……वर्षा ऋतू की खूबसूरती पर तो अनेक कवितायेँ हैं परन्तु कुछ लोगो के लिए वर्षा उतनी सुखद नहीं होती I वर्षा के सभी प्रभावों को समेटे मन को द्रवित करती एक सुन्दर रचना 👌👌💐💐
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमिता
Deleteतुम्हारे स्नेह भरी सराहना मेरा सम्बल है
शब्दों को क्रमबद्ध कर बरसात में पीड़ित लोगो की आत्मा की चीत्कार को सखी तुमने ऐसा हमारे समक्ष उतारा की अब ऐसे जन समुदाए के लिए कुछ सार्थक करने का संकल्प ले ही लिया 🙏🙏धन्य है तुम्हारी लिखनी
ReplyDeleteसखी लेखनी तुम सब के सानिध्य में धन्य हो जाती है
Deleteतुम्हारी प्रशंशा और लेखनी के मर्म तक पहुंचने के लिए हार्दिक आभार
वाह लाजबाव पंक्तियां
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteसुंदर सृजन आदरणीय ।
ReplyDeleteसादर आभार आ0
Deleteक्या बात है प्रिय अनिता जी।बारिश के बहाने से और चीजेँ बाहर निकल आईं।बढिया लिखा है आपने।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏
ReplyDeleteआ0 हार्दिक आभार
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