एक प्रयास
कब सफर पूरा हुआ है ज़िंदगी का हार कर ।
मंजिलों की शर्त है बस मुश्किलों को पार कर।।
साथ मिलता जब गमों का वो मज़ा कुछ और है
कर सुगम अब राह उनसे हाथ तो दो चार कर ।।
मुश्किलों के दौर में बस हार कर मत बैठना
आसमां को नाप लेंगे आज ये इकरार कर ।।
वक़्त की इन आँधियों में क्या बिखरना है सही
दीप जलता ही रहेगा तू हवा पर वार कर।।
आशियाने आरजू के ही वहीं पर टूटते ।
हर किसी पर बेवजह ही क्यों सदा एतबार कर।।
ख्वाहिशों के आसमां में अब सितारे टाँक दे
ओढ़ चूनर चाँदनी की जिंदगी उजियार कर ।।
अनिता सुधीर आख्या
Kar liya ikraar humne bhi
ReplyDeleteवाह वाह धन्यवाद उषा
Delete'वक़्त की इन आँधियों में क्या बिखरना है सही, दीप जलता ही रहेगा तू हवा पर वार कर' और 'आशियाने आरज़ू के ही वहीं पर टूटते, हर किसी पर बेवजह ही क्यों सदा ऐतबार कर' जैसे बेहतरीन शेरों से सजी हुई क़ाबिल-ए-तारीफ़ ग़ज़ल है यह।
ReplyDeleteसादर प्रणाम आ0
Deleteक्या खूब लिखा है मोहतरमा अपने
ReplyDeleteशुक्रिया जनाब
Deleteखूबसूरत एवं भावपूर्ण गज़ल
ReplyDeleteDhanyawad
Deleteवाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है अनिता शानदार
ReplyDeleteख्वाइशों के आसमां में अब सितारे टांक दे
ओढ़ चूनर चांदनी की जिंदगी उजियार कर
आपका हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर और आपको ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
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