गीत
झरते पातों का अब जीवन
तनिक बैठ कर सुस्ता ले
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।
मृगतृष्णा की चाह लगी थी
कितने कूएँ खोद लिये ,
रिसते पिसते घावों को सह
अनगिन दुख को गोद लिये
भंवर जाल में डूबे उतरे
सर्प बहुत डसते काले।।
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।।
नवल वसन की आस करे अब
क्लांत शिथिल जर्जर काया।
यादों की झोली में रक्खा ,
सुर्ख पंखुड़ी की माया।
लगा हुआ था मेला जग का
स्मृतियों को कहां छिपा ले
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।।
एक अकेला साथी मनवा
बँधा हुआ परिपाटी से
टूट शाख से अलग पड़ा अब
मिलना होगा माटी से,
स्याह रात के टिम टिम जुगनू
चाहें पतझड़ पर ताले
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।।