हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
आर्य द्रविड़ के आँगन खेली
तत्सम तद्भव करें दुलार।
सदियों से वटवृक्ष सरिस जो
छंदों का लेकर अवलंब!
शिल्प विधा की पकड़े उँगली
कूक रही थी डाल कदंब
सौत विदेशी का अब डेरा
हिंदी संस्कृत पर अधिकार।।
विद्यालय में दीन-हीन हो
ढूँढ़ रही है नित्य प्रकाश
काई लगी बुद्धि पर जिनकी
उन लोगों से आज निराश
एक दिवस में आँसू पोछे
बाकी झेले दंश अपार।।
नेक प्रचार प्रसार चला अब
भाषा का करने उत्थान
नीयत खोटी चिंतन छोटा
पूर्ण कहाँ फिर हो अभियान
हिंदी के अंतस को फूँके
यौतुक-सी ज्वाला हर बार।।
अनिता सुधीर आख्या
"जैसे चींटियाँ लौटती हैं
ReplyDeleteबिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर
ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा।"
वाह बहुत खूब
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteहिन्दी दिवस पर सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनिता जी
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