Saturday, September 14, 2024

हिंदी

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 


आर्य द्रविड़ के आँगन खेली
तत्सम तद्भव करें दुलार।

सदियों से वटवृक्ष सरिस जो
छंदों का लेकर अवलंब! 
शिल्प विधा की पकड़े उँगली
कूक रही थी डाल कदंब
सौत विदेशी का अब डेरा 
हिंदी संस्कृत पर अधिकार।।

विद्यालय में दीन-हीन हो
ढूँढ़ रही है नित्य प्रकाश
काई लगी बुद्धि पर जिनकी
उन लोगों से आज निराश
एक दिवस में आँसू पोछे
बाकी झेले दंश अपार।।

नेक प्रचार प्रसार चला अब 
भाषा का करने उत्थान
नीयत खोटी चिंतन छोटा
पूर्ण कहाँ फिर हो अभियान
हिंदी के अंतस को फूँके
यौतुक-सी ज्वाला हर बार।।


अनिता सुधीर आख्या


6 comments:

  1. "जैसे चींटियाँ लौटती हैं
    बिलों में
    कठफोड़वा लौटता है
    काठ के पास
    वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
    लाल आसमान में डैने पसारे हुए
    हवाई-अड्डे की ओर
    ओ मेरी भाषा
    मैं लौटता हूँ तुम में
    जब चुप रहते-रहते
    अकड़ जाती है मेरी जीभ
    दुखने लगती है
    मेरी आत्मा।"

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    1. वाह बहुत खूब

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  2. Replies
    1. हार्दिक आभार आपका

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  3. हिन्दी दिवस पर सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार अनिता जी

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