अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस
*पके आम*
रिक्त सदन में पात झरे जब
पके आम सब पीत हुए।
साया बन कर आशंकायें
नित खेलें छुपन छुपाई
खोल नैन की काली पट्टी
एकांत करे भरपाई
मौन गूँजता मन आँगन में
कंपित से भयभीत हुए।।
पोपल मुख पर निस्तेज नयन
नूतन स्वांग रचाती है
दंत बतीसी पानी भरती
जिह्वा शोर मचाती है
श्वास वाद्य की हलचल ही
अब आँगन के गीत हुए ।।
पल पल बढ़ता एकाकीपन
जीर्ण शीर्ण अब मज्जा है
क्लान्त शिथिल मन भाव सुबकता
व्यंग बाण अब सज्जा है
दुर्ग बनाये जो अपनों से
वो अब कालातीत हुए।।
अनिता सुधीर आख्या
चित्र गूगल से साभार
वाह!!!
ReplyDeleteअद्भुत एवं लाजवाब सृजन।
हार्दिक आभार आ0
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