तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, September 30, 2019

माँ दुर्गा के नौ रूप में जीवन के विभिन्न आयाम
***
माँ दुर्गा के नौ रूप है इस जीवन का  आधार
कल्याणकारिणी देवी करतीं जन जन का उद्धार।

शैलपुत्री माता  तुम नव चेतना का संचार करो
ब्रहमचारिणी माता ,अनंत दिव्यता से मन भरो ।

चन्द्रघण्टा मन की अभिव्यक्ति ,इच्छाओं को एकाग्र करो ।
कूष्मांडा प्राणशक्ति तुम   ऊर्जा का भंडार भरो ।

स्कंदमाता ज्ञानदेवी  कर्मपथ पर ले चलो
कात्यायनी माता तुम क्रोध का संहार करो ।

कालरात्रि माता तुम जीवन में शक्ति भरो
महागौरी माँ  सौंदर्य से दैदीप्यमान करो  ।

सिद्धिदात्री माता  जीवन मे पूर्णता प्रदान करो
नवदुर्गे माँ जन जन के जीवन को आलोकित करो ।

आत्मसात कर सके ये अलौकिक रूप तुम्हारे
ऐसी कृपा हम पर करो ,ऐसी कृपा हम पर करो ।


अनिता सुधीर
*दक्षिणा*

'मॉम पंडित जी का पेमेंट कर दो '
सुन कर इस पीढ़ी के श्रीमुख से
संस्कृति कोने में खड़ी कसमसाई थी
सभ्यता दम तोड़ती नजर आई थी ।

मैं घटना की मूक साक्षी बनी
पेमेंट और दक्षिणा में उलझी रही,
आते जाते गडमड करते विचारों को
आज के परिपेक्ष्य में सुलझाती रही।

दक्षिणा का सार्थक अर्थ बताने
 उम्मीद लिए बेटे के पास आई,
पूजन सम्पन्न कराने पर दी जाने
वाली श्रद्धापूर्वक  राशि बताई ।

एकलव्य और आरुणि की कथा सुना
गुरू दक्षिणा का महत्व समझाई ,
ब्राह्मण और गुरु  चरणों में नमन कर
उसे अपनी संस्कृति की दुहाई दे आईं ।

सुनते ही उसके चेहरे पर विद्रूप हँसी नजर आयी
ऐसे गुरु अब कहाँ मिलते मेरी भोली भाली माई ,
अकाट्य तर्कों से वो अपने को सही कहता रहा
मैं स्तब्ध उसे कर्तव्य निभाने को कहती आई ।

न ही वैसे गुरु रहे ,न ही वैसे शिष्य
दक्षिणा देने और लेने की सुपात्रता प्रश्नचिह्न बनी
विक्षिप्त सी मैं दो  कालखंड में भटकती रही,
दक्षिणा के सार्थक अर्थ को सिद्ध करती रही ।

प्रथम गुरू माँ  होने का मैं कर्तव्य  निभा न पाई
अपनी संस्कृति  संस्कार से अगली पीढ़ी को
परिचित करा न पाई
दोष मेरा भी था ,दोष उनका भी है
बदलते जमाने के साथ सभी ने तीव्र रफ्तार पाई।

असफल होने के बावजूद बेटे से अपनी दक्षिणा मांग आयी
तुम्हारे ,धन दौलत सोने चांदी ,मकान से सरोकार नहीं मुझे
बस तू नेक इंसान बन कर जी ले अपनी जिंदगी
इंसानियत रग रग में हो,उससे अपना पेमेंट माँग आयी।
©anita_sudhir

Sunday, September 29, 2019

हौसले परवाज हैं   

जीवन सागर की लहरों सा
हर लहर ,कदम इक साज है,
कभी शांत,कभी उथल पुथल,
हौसले परवाज हैं....

बाधाओं को हँस कर गले लगाते,
जब तूफाँ में डूब रहा जहाज है ,
उनके ही सर पर ताज है ,
जिनके हौसले परवाज हैं ....

वर्जनाओं की बेड़ियों में जकड़ी
बेटियां देने लगीं नित आवाज हैं,
छूती आसमां ,निराले अंदाज हैं
हौसले परवाज हैं ....

बेईमानों का करना इलाज है
ये मद में डूबे हुए गजराज हैं,
ले आयें जग में सुराज हैं ,
हौसले परवाज हैं....

फांसी पर झूलता किसान और
गोदामों में सड़ता अनाज है
आओ बदलें समाज के रिवाज
 हौसले परवाज हैं....

पालन उचित रीति रिवाज का,
सुखी जीवन का यही राज है ।
जीवन में होगा ऋतुराज ,
हौसले परवाज हैं....

उद्घोष है नव समाज का
धैर्य विवेक मिजाज है,
इलाज हुआ पत्थरबाज का
और हौसले  परवाज हैं....

स्वरचित
अनिता सुधीर












Saturday, September 28, 2019





गीतिका
*****
परहित सदा करते रहे विषपान है,
अंतर सरल है नेक वो धनवान है ।

क्यों आज फैला ये तमस चहुँ ओर है,
इसको मिटाना लक्ष्य प्रथम प्रधान है

उम्मीद का दीपक  सदा जलता रहे,
अब आंधियों को ये नया  प्रतिदान है।

दुःख काल में विसरित न हो स्थिर रहे
जग में सदा रहता वही बलवान है ।

रहते सजग जो देश हित में सर्वदा,
उन का सदा होता रहा गुणगान है ।

यूँ छोड़ के जाने कहाँ  वो अब चले,
विस्मृत कठिन स्मृति समाहित प्रान हैं।


मंथन
मुक्तक

मंथन का ये विष मुझे अब पीना होगा
बिन अमरत्व की चाह अब जीना होगा,
तुम गलत कभी हो सकते हो,भला
मुझे ही अपने होठों को अब सीना होगा ।


Friday, September 27, 2019




क्षणिकाएं
पोशाक
1)
अजर अमर आत्मा
बदलती रहती
नित नई पोशाक ,
पोशाक कभी वो
शीघ्र क्यों बदलती!
2)
एक पोशाक
दुखों के छिद्र से भरी हुई
अवसाद से छिद्र बढ़ते हुए
पैबंद लगाने बैठे छिद्रों
पर सुखों का ,
विश्वास के धागों से
सपने टांके,
लगन की सुनहरी जरी से
पोशाक बड़ी खूबसूरत नजर आई ।
3)
पोशाक पर
ऊँगली उठती बार बार
बच्चियों की पोशाक
बता दे कोई ।
4)
वर्दी बड़े सम्मान का विषय
कितनों की कुर्बानी 
वर्दी की आन शान में ,
एक मेडल और सजा था
 वर्दी पर
उसके जाने के बाद ।
5)
आज दुकान पर भीड़ बड़ी
पोशाक सिलवाने आये सभी,
सोचा सबकी एक सी सिल दूँ
इतनी शक्ति देना प्रभू!
सबकी पोशाक  में
धरा की हरियाली
केसरिया शक्ति दे दूँ
श्वेत हिमकणों की शीतलता से
प्रेम का रंग लाल भर दूँ ।
©anita_sudhir
स्वेद/पसीना
**
खेतों में
धूप के समंदर में
पसीने का दरिया
बहाता किसान!
पसीना नहीं ,लहू बहता है
तब किसान आधा पेट खा कर
दूसरों का पेट भरता है ।

सड़कों पर
पसीने के आगोश में
बोझे को गले लगाता मजदूर !
अपने लहू से सींच
दूजे का महल
खुद सड़क किनारे सो जाता है।

सीमा पर
जवान धूप में
खड़ा अपना फर्ज  निभाता !
अपनों की चिंता किये बिना
हमारी रक्षा में शहीद हो जाता है ।

घर में
पिता जीवन भर
परिवार के लिये
खून  पसीना बहाता !
स्वयं कम में गुजारा कर
अपना जीवन होम कर जाता ।

पसीने की स्याही
से लिखता जो
अपने जीवन के कोरे पन्ने!
 वो खून के आँसू नहीं
खुशियों के अश्कों से
जिंदगी भिगोया करता है।



सत्य
सत्य  लिखना कटु ही होता है ,
झूठ चासनी में पगा होता है।
एक कटु सत्य सामने आ खड़ा हो जाता
सोच सोच कर जीना दुश्वार किया करता है ।
मंगल तक हम पहुँचे एक  ही प्रयास में
चाँद तक पहुंचने की आस में
ऊँचा भारत का नाम है ,
देश के वैज्ञानिकों को सलाम है।
पर कटु सत्य  पर नजर डालिए
सरकार और वैज्ञानिक इस ओर भी कदम बढ़ाइए।
सेप्टिक टैंक और गटर में
सफाई कर्मचारियों के क्यों जाते प्राण है।
आपने कभी सोचा या बनते अनजान हैं।
उपकरण ,प्रौद्योगिकी विकसित हो  रही
लाखों किलोमीटर दूर हमारा नियंत्रण है
इन के लिए सुरक्षा के क्या उपकरण है ?
सामान्य स्थितियों में
कोई गटर में उतर नहीं सकता
बिना नशा किये कोई
इसे स्वच्छ  कर नहीँ  सकता ।
जहरीली गैसों का रिसाव
और दम घुटने से मृत्यु
इनकी कोई खबर नहीं आती
इनकी मौत  टी आर पी नहीँ  बढ़ाती
वोटबैंक भी बेअसर रहता
एक दो दिन बाद लाश की तरह
मामला भी ठंडा हो जाता ।
मास्क ,जैकेट ग्लव्स  हैं
तो क्या इनका  अकाल है
या इसमें भी फैला भ्रस्टाचार है।
प्रौद्योगिकी और विकास के विरोधी नहीं
ये कटु सत्य सदैव प्रश्रचिन्ह बन खड़ा  रहता है ।
©anita_sudhir

Thursday, September 26, 2019


ईश्वर चंद्र विद्यासागर

ईश्वर चंद्र विद्यासागर  बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक ,अनुवादक थे ।
ऐसे महापुरुष को उनकी जयंती पर श्रद्धा पूर्ण कोटि कोटि नमन ।

जीवन परिचय:
बंगाल के पुनर्जागरण के स्तंभ में से एक ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी का जन्म  26 सितंबर सन 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीर सिंह गांव में एक अति निर्धन परिवार में हुआ था ।
इनके पिता का नाम ठाकुरदास बंदोपाध्याय बंदोपाध्याय  और माता का नाम भगवती देवी था ।

 शिक्षा:
तीक्ष्ण बुद्धि पुत्र को गरीब पिता ने विद्या के प्रति रुचि विरासत में प्रदान की थी।
 9 वर्ष की अवस्था में बालक ने पिता के साथ पैदल कोलकाता जाकर संस्कृत कॉलेज में विद्यारंभ में विद्यारंभ में विद्यारंभ किया। शारीरिक अस्वस्थता घोर आर्थिक कष्ट गृह कार्य के बावजूद ईश्वर चंद ने ने प्रायः प्रत्येक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया ।1841 में विद्या समाप्ति पर फोर्ट विलियम कॉलेज में में ₹50 मासिक पर मुख्य पंडित पद पर नियुक्ति मिली।
 संस्कृत भाषा और दर्शन में अगाध पांडित्य के कारण विद्यार्थी जीवन में ही संस्कृत कॉलेज में संस्कृत कॉलेज में उन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान की थी। 1846 में  संस्कृत कॉलेज में सहकारी संपादक नियुक्त हुए किंतु मतभेद पर त्यागपत्र पर त्यागपत्र दे दिया।
1851 में यह कॉलेज के मुख्य अध्यक्ष बने परंतु त्यागपत्र दे कर इन्होंने  अपना जीवन साहित्य और समाज की सेवा में लगा दिया ।

उल्लेखनीय योगदान:
 वे नारी शिक्षा के समर्थक थे। इन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल की स्थापना की थी और अपने ही खर्चे से मेट्रोपोलिस कॉलेज की भी स्थापना की थी।संस्कृत अध्ययन की सुगम प्रणाली निर्मित की की। समाज सुधार इनका प्रिय क्षेत्र था जिससे इन्हें कट्टरपंथियों का तीव्र विरोध सहना पड़ा।
विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे। शास्त्रीय प्रमाणों में विधवा विवाह को वैध प्रमाणित किया। पुनर्विवाह विधवाओं के पुत्रों को 1865 में उन्होंने वैध घोषित घोषित करवाया यहां तक कि अपने पुत्र का विवाह  विधवा से ही किया ।
संस्कृत कॉलेज में केवल ब्राह्मणों  और वैद्य   शिक्षा प्राप्त कर सकते थे ।अपने प्रयत्नों से से इन्होंने समस्त हिंदुओं के लिए विद्या का द्वार खोला ।
साधारण व्यक्ति होते हुए भी इन्होंने यह दान पुण्य के काम में असाधारण कार्य किए जिससे लोग इन्हें दयासागर भी कहते थे।

साहित्यिक योगदान:
बंगला गद्य के क्षेत्र में इनका उल्लेखनीय योगदान है। इन्होंने 52 पुस्तकों की रचना की है। जिसमें से 17 संस्कृत में है संस्कृत में है है ।वेतालपंच विंशति ,शकुंतला और सीता बनवास इनकी प्रसिद्ध कृति है।

 जीवन के अंतिम काल:
 स्वार्थी व्यवहार से तंग आकर इन्होंने अपने परिवार के साथ संबंध विच्छेद कर लिया ,और जीवन के अंतिम वर्ष जामताड़ा जिले के कर्माताण्ड में संताल आदिवासियों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। इनके निवास का नाम नंदनकानन था।
 इनके सम्मान में ही अब इस स्टेशन का नाम विद्यासागर रेलवे स्टेशन कर दिया गया है।

मृत्यु :70 वर्ष की आयु में,29 जुलाई 1891 में इनकी मृत्यु  हुई।

आज भी इनके धरोहर  को मूल  रूप  में व्यवस्थित रखा गया है और महत्वपूर्ण सेवा कर इनके कार्यों को गतिशीलता प्रदान की जा रही है ।


Wednesday, September 25, 2019


बस यूँ ही ,

22  22   22   22    22   2
भारत का वो स्थान बना दे या मौला।
वो फिर से पहचान बना दे या मौला ।।

तुम तक कैसे श्रद्धा के फूल चढाऊँ
दर तक इक सोपान बना दे या मौला ।

हर भूखे को रोटी मिलती जाये अब
ऐसा तू हिंदुस्तान बना दे या मौला ।

सपनों में वो अब खोये से रहते हैं
उस दर का दरबान बना दे या मौला।

शब्दों से जज्बात पिरोया करते हैं
'अनिता' की पहचान बना दे या मौला ।

Tuesday, September 24, 2019


बनारस /काशी
दोहावली
***
वरुणा असि के योग पर ,रक्खा इसका नाम ।
घाटों की नगरी रही ,कहें मुक्ति का धाम ।।

विशिष्टता इन घाट की ,है काशी की साख।
है गंगा की आरती  ,कहीं चिता की राख ।।

विश्वनाथ बाबा रहे ,काशी की पहचान ।
गली गली मंदिर सजे,कण कण में भगवान।।

गंगा जमुना संस्कृति ,रही बनारस शान ।
तुलसी रामायण लिखे,जन्म कबीर महान ।।

कर्मभूमि 'उस्ताद' की , काशी है संगीत।
कत्थक ठुमरी की सजे ,जगते भाव पुनीत।।

काशी विद्यापीठ है  ,शिक्षा का आधार ।
विश्व विद्यालय हिन्दू,'मदन' मूल्य का सार।।

दुग्ध ,कचौरी शान है ,मिला'पान 'को मान ।
हस्त शिल्प उद्योग से ,बनारसी पहचान ।।

त्रासदी अधजले शवों ,की !भोग रहे लोग।।
गंगा को प्रदूषित करें ,काशी को ही भोग ।।

बाबा भैरव जी रहे , काशी थानेदार ।
 हुये द्रवित ये देख के ,ठगने का व्यापार।।

धीरे चलता शहर ये,अब विकास की राह।
काशी मूल रूप रहे ,जन मानस की चाह ।।


अनिता सुधीर
दर्पण  को आईना दिखाने का प्रयास किया है

    दर्पण
*********
दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है  तुम्हें
अपने  पर ,कि
तू  सच दिखाता है।
आज तुम्हे  दर्पण,
दर्पण दिखाते हैं!
क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट
बिखर नहीं जाएगा
जब तू उजाले का संग
 नहीं पाएगा
माना तू माध्यम आत्मदर्शन का
पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें  को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता  है
 कि तू सच बताता है ।
माना तुम हमारे बड़े काम के ,
समतल हो या वक्र लिए
पर प्रकाश पुंज के बिना
तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
दर्पण को दर्पण दिखलाना
मन्तव्य  नहीं,
लक्ष्य है
आत्मशक्ति के प्रकाशपुंज
से  गंतव्य तक जाना ।

Monday, September 23, 2019

बेटी

तितली के रंगीन परों सी
जीवन में सारे रंग भरे
चंचलता उसकी आँखों में
चपलता उसकी बातों मे
थिरक थिरक कर  चलती थी
सरगम सी बहती रहती थी
पावों में पायलिया की खनखन
जल तरंग सी छिड़ती थी
घर की रौनक ,सांसो की डोरी
आँगन में चिड़िया सी चहकती थी
सुबह के सूरज की किरणों जैसी
चपल मुग्ध बयार सी बहती थी।
वक़्त का कहर ऐसा टूटा
हैवानियत ने उसे ऐसे लूटा
उसका सामान मिला झाड़ियों में
तन को उसके लहूलुहान किया
जख्मी उसकी रूह हो गयी
हिरनी सी चपलता उसकी
दरिंदगी की भेंट चढ़ गई
हर आहट से डर वो
घर के कोने में दुबक गई
घर जो गूंजता था उसकी
मासूम शैतानियों से,
मरघट सा सन्नाटा फैल गया।
कुछ क्यों हैवान हो रहे
क्यों जिस्म को नोच रहे
क्या उनके घर में बेटियाँ नहीँ
इन मासूम कलियों को खिलने दो
इतना  भी नीचे मत गिरो
इनकी चपलता चंचलता रहने दो
घुट कर जीने को मजबूर न करो
मासूमों को सर उठा जीने दो ।
©anita_sudhir

Sunday, September 22, 2019

बेटी
दोहावली
***
बेटी बगिया की कली,पल पल यों मुस्काय ।
बहती मुग्ध बयार सी ,हिय हर्षित हो जाय ।।

पापा की नन्ही परी ,घर आँगन की शान,
बेटी की जिद पर करे ,सौ जीवन कुर्बान।

पायल की झंकार तुम ,करती दिल पर राज ,
लाडो तुमसे ही बजें ,....मेरे  मन के साज ।

बेटी लाडों से पली ,घर आँगन की शान ।
बेटी को शिक्षित करें ,दो कुल का अभिमान ।।

बड़ा अखरता है हमें,अब बढ़ता व्यभिचार ।
नहीं सुरक्षित बेटियां ,यह कैसा संसार ।।

भेद भाव ये किसलिए, बेटी समझे भार,
मात पिता के प्रेम पर ,दोनों का अधिकार।

कुरीतियों पर वार कर ,रचती सभ्य समाज ।
अग्रणी हर क्षेत्र में ,   बेटी पर है नाज  ।

भोले मुखड़े पर सदा ,सजी रहे मुस्कान,
जीवन खुशियों से सजे ,तू मेरा अभिमान ।

व्याकुल हूँ ये  सोच के ,बेटी  नाजुक काँच
हाथ जोड़ि  विनती !प्रभू,आय न इस पर आँच।

अनिता सुधीर
पेंडुलम
**
अपने ही घर में
अपनों के बीच
अपनी ही स्थिति
से द्वंद करते
अपने मनोभावों में
इधर उधर विचरती
पेंडुलम की तरह
मर्यादा की रस्सी से बंधी
दीवार पर लटकी रहतीं
ये स्त्रियां ......
समाज की वर्जनाओं के
नित नए आयाम छूती
दो विपरीत ध्रुवों में
मध्यस्थता कर अपने
विचारों को दफन करती,
एक भाव की उच्चतम
स्थिति पर पहुँच
गतिशून्य विचारशून्य
हो दूसरी दिशा के
उच्चतम शिखर पर
चल पड़तीं
ये स्त्रियां.....
अपने ही घर में
अपने वजूद को सिद्ध करती
अपने होने का एहसास दिलाती
भावों से भरे मन के
बावजूद निर्वात अनुभव
करते पूरी जिंदगी
पेंडुलम की  तरह
कल्पनाओं में
इधर उधर डोलती
रहती  हैं
ये स्त्रियां......
©anita_sudhir

Friday, September 20, 2019


जीवन दर्शन

दोहावली
**

थामे रहिये कष्ट में ,उम्मीदों की डोर ।
जीवन का तम दूर हो,खुशियों की हो भोर ।।

सब कुछ किस को है मिला,किस्मत का क्या दोष।
हरि इच्छा जो कुछ मिले, ....उसमें कर संतोष।।

गुंजन कर भँवरा चला , देखे पुष्प पराग।
बिन स्वार्थ के कब करे,कौन यहाँ अनुराग ।।

सेज  कभी अर्थी सजे,कभी प्रभू का द्वार ।
लघु जीवन है पुष्प का ,सुरभित सब संसार।।

बूँद बूँद से घट भरे ,समझे इसके बोल ।
संचय कर सत्कर्म का,जीवन है अनमोल।।





Thursday, September 19, 2019

वृद्धावस्था
***
नींव रहे ,ये सम्मानित बुजुर्ग
मजबूत हैं इनके  बनाये दुर्ग
छत्रछाया में जिनके पल रहा
सुरक्षित आज का नवीन युग।
परिवर्तनशील जगत में
खंडहर होती इमारतें
और उम्र के इस पड़ाव में ..
निस्तेज पुतलियां,भूलती बातें
पोपला  मुख ,आँखो में नीर
झलकती व्यथा ,अब करती सवाल है ...
मेरे होने का औचित्य क्या ..
क्या मैं जिंदा हूँ ....
तब स्पर्श की अनुभूति से
अपनों का साथ पाकर
दादा जी,  जो जिंदा है बस
वो थके जीवन में  फिर जी उठेंगे ....
वृद्धावस्था अंतिम सीढ़ी  सफर  की
समझें ये पीढ़ी  जतन से
" जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
तब अस्ति से नास्ति
का जीवन  बड़ा कठिन ।
अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक  जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।"
जो बोया  काटोगे वही
मनन   करें  ,सम्मान  दे इन्हें
पाया जो प्यार  इनसे , शतांश भी लौटा सके इन्हें
ये तृप्त हो लेंगे.. ये फिर जी उठेंगें ...

अनिता सुधीर


रस
रस के विभिन्न आयाम
***
ये भावों के मोती सजते ,शब्द विषय रस घोल ।
रस के कितने ही रूपों से  ,मन में उठे हिलोल।।

माता से अमृत रस पाते, करे दुग्ध का पान।
बूंदे  निचोड़ कर छाती की ,देती जीवनदान।।

ईश्वर का वंदन हम करते, भक्ति भाव से  पूर।
मात पिता की आशीषों में ,जीवन रस का नूर।।

गुंजन करते पीते भौरें ,  फूलों का मकरंद ।
नव कोपल से कलियां खिलती,रचें सृष्टि का छन्द।।

काव्य रसों से सजी लेखनी ,रचते ग्रंथ सुजान ।
लिखे वीर रस  की गाथायें,करके काज महान ।।

हास्य रस में सृजन अनोखा  पेट गया था फूल।
रौद्र रूप में पति को देखा ,मस्ती जाती भूल ।।

कोमल उर के भावों से है सजता रस श्रृंगार।
विरह अग्नि के रस में लिखता,प्रणय भाव का सार।

भावों का रस जो वाणी में, होता है अनमोल।
कभी घाव बन कर टीसें क्यों,तोल मोल के बोल।।

बंजर मन की धरती पर रस जीवन का आधार।
कहता कोई हौले से जब तुमसे ही संसार।।

अनिता सुधीर

Wednesday, September 18, 2019


  चौपट
  हास्य व्यंग्य
***
चौपट विषय में हास्य ढूंढता कोई भला
इससे बड़ा व्यंग आप ही बताओ ,होगा भला ,
अंधेर नगरी चौपट राजा हुआ करता था
टका सेर भाजी ,टका सेर "खाजा" था भला।
आज का हाल  देखो क्या हो रहा है ,
टका सेर भाजी  मुफ्त में "खाजा" हो रहा है।
मुफ्त में खाजा की भीड़ बढ़ रही है
सारी व्यवस्था ध्वस्त और चौपट हो रही है ।
योजनाएं तो बनाती आ रहीं हैं सरकारें ,
चौपट प्रजा ही प्रजा के लिए कर रही है ।
कहाँ से शुरू कर कहाँ तक गिनाऊँ
कैसे कोई निवाला अब चैन का खाऊं।
कुकुरमुत्ते की तरह शिक्षण संस्थान उग रहे
चौपट व्यवस्था और काम  महान कर रहे ।
डिग्रियां ले कर घूमते फौज बेरोजगार की बढ़े
मानसिक स्तर के क्या कहने दोष सरकार को मढ़े।
बिकी मीडिया कराती प्रतिदिन ही युद्ध है
आज के इस दौर में अब कहाँ बचे बुद्ध हैं।
जिस देश में नियम तोड़ने के  लिए बनते हों
हेलमेट सुरक्षा नहीं,चालान से बचने के लिए पहनते हों
किसकी जेबें खाली ,किसकी भरी जा रही है
रंग उड़ी जनता पर मुस्कान लायी जा रही है ।
कौवों को भोग लगाते श्रद्धा से श्राद्ध में
दो रोटी  न खिलायें किसी आश्रम में वृद्ध को।
सबसे  बड़ा हास्य और सबसे बड़ा व्यंग है
चौपट होता आम आदमी,जीवन कसता तंज है।
सोचती हूँ हास्य कुछ अपने जीवन में भर  लूँ
संवेदनाओं को अपने अब मृतप्रायः कर लूँ ।
चौपट  है कुछ, ये महसूस फिर होगा ही नहीं,
टका सेर भाजी और चार सेर खाजा होगा हर कहीं ।


अनिता सुधीर






   लघुकथा
ई उपवास
**
 रोहन( दीप्ति से )  गुस्से में..
इतनी देर से फ़ोन बज रहा है ,फ़ोन क्यों नहीं उठा रही हो?
दीप्ति  :मेरा उपवास है ,इसीलिए नहीं उठा रही हूँ।
रोहन  :क्या तमाशा है ,रोज कोई न कोई उपवास रहता है तुम्हारा! और फ़ोन न उठाने का क्या संबंध है व्रत से !
दीप्ति      :आज हमारा ई उपवास है ।मोबाइल , इंटरनेट ,सोशल मीडिया से दूर हूँ ।
रोहन  :किसी को कोई आवश्यक कार्य  या कोई परेशानी हो सकती है।तुम फ़ोन नही उठा रही।
क्या तुमने अपने सभी परिचित को सूचित किया कि
तुम्हारा ई उपवास है ।
तुम्हारे फोन न उठाने से वो चिंता में पड़ जायेगा
और दूसरी  बात उपवास का वास्तविक अर्थ समझती हो ।
उपवास ,व्रत एक प्रण और प्रतिज्ञा है ।अपने मन और इच्छाओं पर नियंत्रण का एक माध्यम  है।
अगर तुम्हें ये उपवास करना है तो एक दिन क्यों !
तुम अपने पर नियंत्रण रख कर प्रतिदिन  e उपवास रख सकती हो ,कुछ समय सीमा तय कर लो,और उसके पालन का प्रण लो ।
दीप्ति फ़ोन मिलाने लगी .थी...
रोहन की बात  वो समझ चुकी थी ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

Tuesday, September 17, 2019

मानव अधिकार पर कुछ पंक्तियां


इस सभ्य सुसंस्कृत उन्नत समाज में
मानव लड़ रहा अधिकारों के लिए
क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनती ,सभी
सिर उठा कर जिये,समता का भाव लिए ।


शिक्षा ,कानून आजादी ,धर्म ,भाषा
काम  हो सबका मौलिक अधिकार
क्या कभी चिंतन कर सुनिश्चित किया
क्यों नहीं बना अब तक वो उसका हक़दार।


समता के नाम पर क्या किया तुमने
आरक्षण का झुनझुना थमा हीन साबित किया
बांटते रहे रेवड़ियाँ अपने फायदे के लिए
सब्सिडी और कर्ज माफी से उन्हें बाधित किया।


मानव अधिकार की बातें कही जाती हैं
अधिकार के नाम पर भीख थमाई जाती है
देने वाला भी खुश और लेने वाला भी खुश
इस लेनदेन में जनता की गाढ़ी कमाई जाती है।


क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था बनाई जाती है
जहां अधिकार की बातें बेमानी हो जाए
ना कोई भूखा सोए ,न शिक्षा से वंचित हो
भेदभाव मिट जाए,हर हाथ को काम मिल जाये ।


योजनाएं तो बनाते हो पर लाभ नहीं मिलता
बिचौलिए मार्ग में बाधक बन तिजोरी भरते है
कानून का अधिकार है,लड़ाई लंबी चलती है
लड़ने वाला टूट गया बाकी सब जेबें भरते है।


महंगी शिक्षा व्यवस्था है कर्ज ले कर पढ़ते है
नौकरी  गर न मिली  तो कर्ज कैसे चुकायेगें
कर्ज देने मे भी बीच के लोग कुछ  खायेंगे
बेचारा किसान  दोनो तरह से चपेटे में आएंगे।


आयोग बना देने से,एक दिवस मना लेने से
रैली निकाल लेने से ,कुछ नहीं होगा
मानव पहल तुम करो ,दूसरे के अधिकार मत छीनो
खोई हुई प्रतिष्ठा  के वापस लाने के हकदार बनो ।


अनिता सुधीर

Monday, September 16, 2019

आज का यथार्थ

लेडीज़ एंड जेंटलमैन

आज हम सब यहाँ हिंदी डे मनाने के लिए इकठ्ठा हुए  हैं ।
एज यू नो हिंदी लैंग्वेज हमारी  मदर टंग है ।एवरी ईयर ये 14th सेप्टेंबर को आता है । हम लोग बड़े जोर शोर से इसे मनाते हैं ।हम सबको आफिस में हिंदी में ही काम करना चाहिये । जितनी भी  फ़ाइल हो उसमें सिस्टम से  नीट एंड क्लीन काम हो ।
हमें अपने वर्क प्लेस पर और अधिक  अटेंशन देने की जरूरत है ।
हिंदी के प्रौग्रेस और प्रोमोशन के लिये पोएम कंपीटिशन भी जरूर करवाना चाहिए ।
यंग जनरेशन   से  स्पेशली अपील करता हूँ कि वो हिंदी को एक्सेप्ट करें ।
थैंक्यू


अनिता  सुधीर

Friday, September 13, 2019



 गीत
***
"हिन्दी है अस्तित्व हमारा" ,गहन भाव ये बोल।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।

मीरा की भक्ति लिखी इसमें ,लिखा प्रेम रसखान,
कबिरा के दोहों से सजती ,भाषा मातृ महान ।
प्रेमचंद जयशंकर करते ,हिंदी का गुणगान,
महादेवी दिनकर की कृतियां,मनवा करें हिलोल।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....

देवनागरी भाषा अपनी,रचते छन्द सुजान ,
चुन चुन कर ये भाव सजाती ,हिन्दी है अभिमान।
विदेशी का सम्मान करना ,सँस्कृति की पहचान,
नहीं बदल पायेगा कोई  ,भाषा का  भूगोल ।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....

हिन्दी का वन्दन अभिनन्दन, हिन्दी हो अभियान,
एक दिवस में क्यों बाँधें हम ,हिन्दी से हिन्दोस्तान।
जीवन में रची बसी रहती ,हिंदी है पहचान ,
 मधुरम मीठी भाषा वाणी,रस देती है घोल ।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....

हिन्दी है अस्तित्व हमारा" ,गहन भाव ये बोल,
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।

अनिता सुधीर



Thursday, September 12, 2019

शहनाई

दोहा और चौपाई के माध्यम से

***
घर अँगना बजते रहें ,शहनाई के साज ।
मधुर सुरों की गूँज से,पूरे मंगल काज ।।

किलकारी से गूँजा आँगन,नन्हीं परी गोद में आई
देख सुंदर सलोना मुखड़ा माँ की ममता हैअकुलाई।
मंगल गीतों से हिय हरषे,तोरण द्वारे द्वारे सजते ।
कलिका बगिया में मुस्काई,देखो गूँज उठी शहनाई।।

ठुमुक ठुमुक कर जब चलती वो,खन खन कर पायल खनकाई।
चन्द्रकला सी बढ़ती जाये ,आती जल्दी क्यों तरुणाई
लेकर हाथों में जयमाला,छोड़ चली बाबुल का अँगना।
बेटी की अब होय विदाई ,देखो गूँज उठी शहनाई ।

शहनाई के साज से ,बसा रहे संसार ।
शुचिता शुभता से मिले ,खुशियों का भंडार।।

©anita_sudhir

Wednesday, September 11, 2019

विधाता छन्द
1222 1222, 1222 1222

विराजो शारदे माँ तुम,नया आसन बिछाते हैं
तुम्हारे ही कृपा से  हम ,नया अब गीत गाते  हैं।

सजा दो लेखनी  मेरी,मिटा दो बीच की दूरी
तुम्हारी ही कृपा से हम,विधा नित सीख पाते हैं।

 सजाते भाव के मोती,चढ़ाते शब्द की माला,
तुम्हारी ही कृपा से हम,अनोखे पद रचाते हैं ।

लिखें गाथा शहीदों की ,कहें सब सच जमाने का
तुम्हारी  ही कृपा से हम, निडरता से बताते हैं ।

अंधेरी रात में तुम ही ,दिये की रोशनी बनती
तुम्हारी ही कृपा से हम,उजाला देख पाते हैं ।

©anita_sudhir