तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Saturday, December 21, 2019

गीतिका
****

शरम से निगाहें गड़ी जा रहीं हैं
अभी भी,कली जो लुटी जा रही है।

जलाते रहे जो चमन दूसरों के ,
उन्हीं की खुशी अब जली जा रही है।

रखे हौसला,जब मुसीबत सही थी,
कहानी उसी की लिखी जा रही है।

फसल विष भरी जो उगाते रहे वो
वही भीड़ अब ये बढ़ी जा रही है।

जरा होश में आइये अब सभी तो
यहाँ शाम ये जो ढली जा रही है।

अनिता सुधीर

No comments:

Post a Comment