तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, January 22, 2020

नहीं बदला

विजात छन्द
'नहीं बदला

नहीं बदला ,नहीं बदला,
विचारो क्या नहीं बदला ।

रही थी जो कभी अचला,
चली थी वो बनी चपला।
हुई क्यों आज बेचारी
रही क्या आज लाचारी।
समझते क्यों उसे अबला,
धरेगी रूप वो सबला ।
नहीं बदला ...
विचारो...

समय का चक्र है चलता ,
सदा ये सम कहाँ रहता ।
यहीं सुख दुख पला करता
इसे समझो ,यही छलता।
कभी पिछड़ा,कभी अगला,
नियम अब भी नहीं बदला।
नहीं बदला..
विचारो...

सदा क्यों मौत से डरना
यहीं जीना ,यहीं मरना ।
वतन की लाज है रखना
इसी पर आज मर मिटना।
रखे जज्बा रहे पगला
करें है वार अब दहला ।
नहीं बदला .
विचारो...

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