तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Saturday, February 29, 2020

वैमनस्य

रस्सी जलती ,ऐंठन रहती
कब  पकड़ोगे दूजा छोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर


एक डाल के सब पंछी है,
जग में रहते कोयल ,काग ,
जो हो मीठी,कर्कश वाणी
रखिये पर उर में अनुराग ।
मत बनिये मन कोयल काला
तन काले का भावे शोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।


अब मौसम बदले पल पल में
जब तब खेलें खूनी फाग
ठंडक में है गरमी लगती
अपनी ढपली अपना राग।
दिया सीख दूजों को करते,
उर सागर में बसता चोर ,
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।


सहन शक्ति सीता की भूले
भूले पन्ना माँ  का त्याग,
बोझ अहम् का बढ़ता जाता,
जले स्वार्थ की उर मेँ आग।
घना  कोहरा दूर भगाओ
प्रेम रश्मि से हो अब भोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर

©anita_sudhir

4 comments:

  1. आ0 सादर आभार रचना को स्थान देने के लिए

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. सहन शक्ति सीता की भूले
    भूले पन्ना माँ का त्याग,
    बोझ अहम् का बढ़ता जाता,
    जले स्वार्थ की उर मेँ आग।
    वाह!!!
    लाजवाब नवगीत।

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