रस्सी जलती ,ऐंठन रहती
कब पकड़ोगे दूजा छोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर
एक डाल के सब पंछी है,
जग में रहते कोयल ,काग ,
जो हो मीठी,कर्कश वाणी
रखिये पर उर में अनुराग ।
मत बनिये मन कोयल काला
तन काले का भावे शोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।
अब मौसम बदले पल पल में
जब तब खेलें खूनी फाग
ठंडक में है गरमी लगती
अपनी ढपली अपना राग।
दिया सीख दूजों को करते,
उर सागर में बसता चोर ,
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।
सहन शक्ति सीता की भूले
भूले पन्ना माँ का त्याग,
बोझ अहम् का बढ़ता जाता,
जले स्वार्थ की उर मेँ आग।
घना कोहरा दूर भगाओ
प्रेम रश्मि से हो अब भोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर
©anita_sudhir
कब पकड़ोगे दूजा छोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर
एक डाल के सब पंछी है,
जग में रहते कोयल ,काग ,
जो हो मीठी,कर्कश वाणी
रखिये पर उर में अनुराग ।
मत बनिये मन कोयल काला
तन काले का भावे शोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।
अब मौसम बदले पल पल में
जब तब खेलें खूनी फाग
ठंडक में है गरमी लगती
अपनी ढपली अपना राग।
दिया सीख दूजों को करते,
उर सागर में बसता चोर ,
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर।
सहन शक्ति सीता की भूले
भूले पन्ना माँ का त्याग,
बोझ अहम् का बढ़ता जाता,
जले स्वार्थ की उर मेँ आग।
घना कोहरा दूर भगाओ
प्रेम रश्मि से हो अब भोर
वैमनस्य का कारण ढूंढो
झांक जरा भीतर की ओर
©anita_sudhir
आ0 सादर आभार रचना को स्थान देने के लिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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ReplyDeleteसहन शक्ति सीता की भूले
भूले पन्ना माँ का त्याग,
बोझ अहम् का बढ़ता जाता,
जले स्वार्थ की उर मेँ आग।
वाह!!!
लाजवाब नवगीत।
जी हार्दिक आभार
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