तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Thursday, April 30, 2020

लखनऊ


मेरा शहर
***
धाम नवाबों के नगर,लखनपुरी है नाम ।
बागों का है ये शहर,लिये दशहरी  आम ।।

अविरल नदिया गोमती, उत्तर रहा प्रदेश ।
हँसते हँसते आप भी ,कुछ पल करें निवेश।।

आप आप पहले कहें,अद्भुत है तहजीब ।
अवध नज़ाकत जानिये, उर्दू रहे करीब ।।

बाड़ा है ईमाम का ,भूलभुलैया  नाज ।
हर पल के इतिहास में,कितने सिमटे राज।।

ज्येष्ठ मास मंगल रहा ,यहां बड़ा ही खास ।
पंच मुखी हनुमान जी,पूरी  करिये आस ।।

नृत्य कला का केंद्र ये ,संस्कृति से भरपूर।
चिकन काम प्रसिद्ध हुआ,जरदोजी मशहूर।।

शाला चलती शोध की ,सिखा रहा विज्ञान ।
औषधि, पादप क्षेत्र में ,होते अनुसंधान ।।

पान लखनवी खाइए,संग टुंडे कबाब ।
लाजवाब कुल्फी रहे,हजरतगंज शबाब।।

कण कण में है शायरी ,आशिक़ी रहा मिजाज।
चौराहे नुक्कड़ सजे ,रिश्तों के नित साज ।।

गंगा जमुनी सभ्यता,है इसकी पहचान।
मुझको इस पर गर्व है,मेरा शहर महान।।

अनिता सुधीर आख्या












Tuesday, April 28, 2020

बुद्धि और ज्ञान

दोहा छन्द

मनुज श्रेष्ठतम जीव में,ज्ञान रहा आधार ।
ज्ञान सत्य की खोज से,करे बुद्धि विस्तार।।

बुद्धि सदा सत्मार्ग हो,करना पड़ता यत्न।
तत्व ज्ञान मिलता तभी,संग रहे गुरु रत्न ।।

ज्ञानी जब अभिमान में,करते रहते रार ।
बुद्धि चक्षु को खोलता,सकल जगत का सार।।

निराकार शिव जानिये,शंकर हैं साकार।
बुद्धि ज्ञान के भेद से, तत्व लिए आकार ।।

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©anita_sudhir

Friday, April 24, 2020

ध्यान


ध्यान

आदि सृष्टि में मूल ओंकार
कल्याण भाव का अर्थ निहित

स्थूल जगत के सूक्ष्म मनुज कण
वृहद ब्रहमांड समाये हुए
पंच तत्व से बना शरीरा
अनगिन रहस्य छिपाये हुए
ॐ निनाद में शून्य सनातन
है ब्रहाण्ड समस्त समाहित
आदि सृष्टि में मूल ओंकार
कल्याण भाव का अर्थ निहित।

निसृत ध्वनी होती श्वासों से
प्रणव बोध के अवयव जानें
नौ नादों की योग भूमियाँ
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव मानें
अन्तर्मन में ध्यान लगा के
प्रणव स्फुरण अति बल अवगाहित
आदि सृष्टि का मूल ओंकार
कल्याण भाव का अर्थ निहित।

शून्य विचारों को करके जब
बहिर्जगत से नाता तोड़ा
पक्षी कलरव की आवाजें
सागर तट से बंधन जोड़ा
मिश्रित ध्वनि जो उद्भव अंतस
गतिशील गंगा से प्रवाहित
आदि सृष्टि का मूल ओंकार
कल्याण भाव में अर्थ निहित।

अनिता सुधीर आख्या




Wednesday, April 22, 2020

मन

चेतन और अवचेतन मन

चेतन अरु अवचेतना ,रखे भिन्न आयाम ।
जाग्रत चेतन जानिये ,अवचेतन मन धाम।।

पंच तत्व निर्मित जगत,चेतन जीवन सार ।
अवचेतन मन साधना ,पूर्ण सत्य आकार ।।

तर्क शक्ति अरु भावना,नींव पड़े व्यवहार ।
सोच सकारात्मक रखें,यही सत्य आधार ।।

दोनों का अस्तित्व ही ,है जीवन का सार ।
दूर करें पाखंड जो ,मन हो एकाकार।।

Sunday, April 19, 2020

कैक्टस का फूल




मरुथल में
एक फूल खिला
कैक्टस का ,
तपते रेगिस्तान में
दूर दूर तक रेत ही रेत ,
वहाँ खिल कर देता ये संदेश
विपरीत स्थितियों में
कैसे रह सकते शेष
फूल खिला तो सबने देखा ,
पौधे को किसने सोचा?
स्वयं को ढाल लिया
विपरीत  के अनुरुप
अस्तित्व को बदला कांटो में
संग्रहित कर सके जीवन जल
खिल सके पुष्प ।
ऐसे ही नही खिलता
मानव बगिया मे कोई पुष्प,
माली को ढलना पड़ता है,
परिस्थिति के अनुरूप ।

अनिता सुधीर 

Wednesday, April 15, 2020

विषाणु


 सोच का विषाणु

छिपा हुआ है विष अणुओं का
बुद्धि कवच की कच्ची गोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली

मिले जीत जब दिखता दुश्मन
बात सही है नहीं ठिठोली
निम्न सोच की चादर  ताने
अदृश्य सोता रहा  बिचोली
एक कोप कोरोना बनकर
खेल रहा है आंख मिचोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।

मार कुंडली बैठा सिर पर
नित भ्रष्ट करे सुविचारों को
अपना उल्लू रहा साधता
क्यों अनगिन पाल विकारों को
अहम् खड़ा है शीश उठाये
खेल तंत्रिकाओं से होली।
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।

दबे पांव धीरे घुस आता
और दिखाता हेरा फेरी
भेजा मति को घास चराने
करता पल पल तेरी मेरी
एक बखेड़ा द्वार खड़ा है
एक बनाता घृणित रंगोली
नाच नचाये करे इशारे
मति में करता है घटतोली।

अनिता सुधीर आख्या

Monday, April 13, 2020

माटी



दोहावली
***
माटी मेरे देश की,इस पर है अभिमान।
तिलक लगा कर भाल पर,करते हैं सम्मान।।

इस माटी में जन्म ले काम इसी के आय।
वतन पर जो मर मिटे,जीवन सफल कहाय।।

रक्त शहीदों का बहा,माटी है अब लाल।
कब तक होगी ये दशा,माटी करे सवाल।।

पूजें माटी खेत की,करके कर्म पवित्र।
मान बढ़े भू पुत्र का ,करें यत्न सब मित्र ।।

अंकुर निकले बीज से ,दे ये अन्न अपार।
माटी गुण की खान है,औषध की भरमार।।

कच्ची माटी के घड़े ,सोच समझ कर ढाल।
उत्तम बचपन जो गढ़ो  ,उन्नत होगा काल।।

माटी को  बाँधे जड़ें  ,रोके मृदा कटाव ।
स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव।।

अनिता सुधीर








Saturday, April 11, 2020

सैनिक

माटी के लाल,तूने माँ भारती संग प्रेम की गाथा रची
अपना सर्वस्व न्योछावर कर प्रेम की पराकाष्ठा लिखी
तुम्हारी विरासत सहेजने का वादा हम करते है
वीर सैनिकों की शहादत को हम नमन करते है।

हम सीमा पर नही डटे ,न खाई दुश्मन की गोली
बस इतनी ख्वाहिश है तुम हम संग खेलो होली
पर अंदर बाहर दुश्मन घात लगाए बैठा है
हमारी रक्षा  हेतु तुम खा जाते सीने पर गोली।

शहादत का सेहरा बांध मृत्यु संग ब्याह रचाते हो
जन्मभूमि की रक्षा हेतु  तुमअपने प्राण गवांते हो
भारत माँ के बेटे बन इस दुनिया से जाते हो
तिरंगे मे लिपट शादी का जोड़ा पहन घर आते हो।

कर्म ऐसे कर तुम तो गर्व से इठलाते हो
शहादत सिर्फ तुम नही ,माता पिता भी देते हैं
पत्नी बच्चों की शहादत पर मन व्यथित होता है
आंखे नम कर इस शहादत को हम नमन करते है

खून खौलता है जब मौत पर राजनीति होती है
पुलवामा उरी जैसी घटनाओं की आवृत्ति होती है
कसम खाते है तुम्हारी शहादत व्यर्थ नहीं जाने देंगे
तुम्हारे लहू के  कतरे कतरे का हिसाब लेके रहेंगे ।


©anita_sudhir

Friday, April 10, 2020

दीप


दोहावली
**
दीप जलाओ प्रेम का,लड़ना भीषण युद्ध ।
ऊर्जा का संचार हो ,अंतस होगा शुद्ध ।।
**
मानवता के दीप को,शत शत करें प्रणाम।
विकट काल में वीर ये,करते उत्तम काम ।।
**
अंतस की बाती बना,तेल समर्पण डाल ।
दीपक बन कर हम जलें,उत्तम होगा काल।।
**
दीप जला कर ज्ञान का,करें तमस का नाश।
ध्वजवाहक अब आप हो,फैले सत्य प्रकाश।।
***
विकट काल है विश्व में,भारत जगमग देश ।
जले दीप से दीप जो,बना नया परिवेश ।।

अनिता सुधीर





Thursday, April 9, 2020

वैरागी

**
मनुष्यत्व को छोड़
देवत्व को पाना ही
क्या वैरागी कहलाना ।
पंच तत्व निर्मित तन
पंच शत्रुओं से घिरा
 जग के प्रपंच में लीन
इस पर विजय
संभव कहाँ!
हिमालय की कंदराओं में
जंगल की गुफाओं  में
गरीब की कुटिया में
या ऊँची अट्टालिकाओं में!
कहाँ मिलेगा वैराग्य
क्या करना होगा सब त्याज्य
क्या बुद्ध बैरागी रहे
या यशोधरा कर्तव्यों को
साध वैरागिनी रहीं !
गेरुआ वसन धारण किये
हाथ में कमंडल लिये
सन्यासी बने
वैरागी बन पाए
या संसारी संयमी हो
कर्त्तव्य साधता रहा
वही वैरागी रहा ।
ज्ञान प्राप्ति की खोज
दर दर भटकते लोग
निर्लिप्त में लिप्त
वो वैरागी
या जो लिप्त  में निर्लिप्त
हो जाये,
वो वैरागी कहलाये।

©anita_sudhir

Monday, April 6, 2020

महावीर जयंती



कविता
छंदमुक्त
***
अज्ञानता का अंधकार जब छाया था संसार में
ज्ञान का प्रकाश फैलाया चौबीसवें तीर्थंकर ने ।
जन्म पूर्व माँ त्रिशला को स्वप्न में आभास हुआ
राजा सिद्धार्थ ने स्वपनों को यथा परिभाष किया।
साधना ,तप ,अहिंसा से, सत्य से साक्षात्कार किया
महापुरुष महावीर ने जनजीवन को आधार दिया  ।
जैन  धर्म को पंचशील का सिद्धांत  बतलाया
सत्य,अहिंसा,अपरिग्रह,अस्तेय, ब्रह्मचर्य सिखाया ।
बारह महत्वपूर्ण वचनों से था भिज्ञ करवाया
'जियो और जीने दो' का अर्थ था समझाया ।
शत्रु कहीं बाहर नही ,भीतर ही विराजमान है
क्रोध ,घृणा ,लोभ अहम  से लड़ना सिखाया ।
स्वयं को जीतना ही श्रेयस्कर है ,समझाया
क्षमा और प्रेम के महत्व  का पाठ पढ़ाया ।
आत्मा सर्वज्ञ और आनंद पूर्ण है ,
शांति और आत्मनियंत्रण ही महत्वपूर्ण है ।
अलग कहीं न पाओगे प्रभु के अस्तित्व को
सही दिशा में प्रयास कर पा जाओ देवत्व को ।
शेर और गाय अब  एक ही घाट पानी पियें
आओ मानवता  का दीप हम प्रज्वलित करें।
आज के समय की  भी यही पुकार  है
तीर्थंकर के संदेशों को आत्मसात कर जीवन सफल करें।
उनके वचनों का पालन करने का व्रत  लेते है
महावीर जयंती पर शत शत नमन करते हैं ।

अनिता सुधीर

Thursday, April 2, 2020

राम

राम

दर्शन चिंतन राम का,है जीवन आधार।
आत्मसात कर राम को,मर्यादा है सार ।।


नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल
नेह हृदय कुछ बोल रहा था,
बसी राम की उर में मूरत
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।

मुखमंडल की आभा ऐसी,
दीप्ति सूर्य की चमके जैसी।
बंद नयन में तुमको पाया,
आठ याम की लगन लगाया।
इस पनघट पर घट था रीता
ज्ञान चक्षु वो खोल रहा था।
बसी  राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।।

आहद अनहद सब में हो तुम ,
निराकार साकार सभी तुम ।
विद्यमान हो कण कण में तुम ,
ऊर्जा का इक अनुभव हो तुम ।
झांका  जब अपने अंतस में,
वरद हस्त अनमोल रहा था ।
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।।

राम श्याम बन संग रहो तुम,
चाह यही मैँ ,तुम्हें निहारूँ ।
मन मंदिर के दरवाजे पर,
नित दृगजल से पाँव पखारूं।
इसी आस में बैठी रहती ,
उर सागर किल्लोल रहा था।
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा था।

अनिता सुधीर 'आख्या'