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जिंदगी की मुश्किलों से मशविरा ले जाऊँगा।
इस गुलिस्तां के अदब को मैं निभा ले जाऊँगा।।
क्यों मुहब्बत की हवा भी अब बगावत कर रही
नफ़रतों की आँधियों को मैं बहा ले जाऊँगा।।
अब तलक मज़मून ख़त का याद हमने है रखा
कह रहा था आपको इस मर्तबा ले जाऊँगा।।
दौड़ में है वक़्त ज़ाया,सैर जो अब साथ में हो
इस शहर की शाम ये बाद-ए-सबा ले जाऊँगा l
बन रही अब है नजाकत खुद ही देखो इक गजल
आपके इस इत्र का फिर काफिया ले जाऊँगा।।
अनिता सुधीर आख्या