काव्य कूची
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Tuesday, January 11, 2022
तुम्हारे हाथ
तुम्हारे गर्म हाथों की गर्मी
रूह पर जमी बर्फ पिघला देती है..
तुम्हारे हाथों की वो प्यार भरी थपथपाहट
सारे गिले शिकवे मिटा देती है..
शायद ये जानते हो तुम
जानते हो न तुम..
फिर क्यों समेटे रहते हो अपने गर्म हाथ तुम..
2 comments:
दीप्ति सिंह "दीया"
January 11, 2022 at 8:47 PM
बहुत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी 💐💐
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जितेन्द्र माथुर
January 12, 2022 at 10:26 AM
ऐसी बात कही जो दिल को छू गई।
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बहुत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी 💐💐
ReplyDeleteऐसी बात कही जो दिल को छू गई।
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