काव्य कूची
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Wednesday, June 5, 2024
हार जीत
हार जीत
कुंडलियां
जीते भी हैं हार सम,लगे हार भी जीत।
लोकतंत्र अब देखता,कौन रहेगा मीत।।
कौन रहेगा मीत,सगा भी अवसर देखे।
राजनीति के रंग,बदलते कैसे लेखे।।
हुआ अचंभित देश,क्षोभ को सारे पीते।
नहीं कार्य का मोल,जाति में बॅंट कर जीते।।
अनिता सुधीर आख्या
3 comments:
गगन शर्मा, कुछ अलग सा
June 5, 2024 at 12:30 PM
सटीक !
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Anonymous
June 5, 2024 at 11:40 PM
सादर आभार आ0
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गगन शर्मा, कुछ अलग सा
June 5, 2024 at 12:33 PM
आइए चलें अपना कर्तव्य निभाएं 😊
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सटीक !
ReplyDeleteसादर आभार आ0
Deleteआइए चलें अपना कर्तव्य निभाएं 😊
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