सत्य बताने आ गया,पितर श्राद्ध का काल है।
परिणति जब सबकी यही,जाना क्या कंगाल है।।
जीवित जब संसार में,मिले मान वटवृक्ष को,
पाखंडी जब हाॅंडियाॅं,कब गलती फिर दाल है।।
अंतर्मन की शुद्धि कर,चिंतन हो इस बात का,
राग द्वेष के फंद में,सकल जगत बेहाल है।।
मानव मानव ही रहे,चाह नहीं देवत्व की,
चंचल मन को थाम कर,रखना उन्नत भाल है।।
दिव्य शक्ति माँ रूप का,फिर स्वागत सत्कार कर
सरल हृदय के हाथ में,जब पूजन का थाल है।।
अनिता सुधीर आख्या