तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क
Saturday, September 26, 2020
वर्तमान भारत
Tuesday, September 22, 2020
गीत
मैं धरा मेरे गगन तुम
अब क्षितिज हो उर निलय में
प्रेम आलिंगन मनोरम
लालिमा भी लाज करती
पूर्णता भी हो अधूरी
फिर मिलन आतुर सँवरती
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय में।।
मैं धरा..
धार बन चलती चली मैं
गागरें तुमने भरी है
वेग नदिया का सँभाले
धीर सागर ने धरी है
नीर को संगम तरसता
प्यास रहती बूँद पय में।।
मैं धरा..
नभ धरा फिर मान रखते
तब क्षितिज की जीत होती
रंग भरती चाँदनी जो
बादलों से प्रीत होती
भास क्यों आभास का हो
काल मृदु नित पर्युदय में।।
©anita_sudhir
Sunday, September 20, 2020
अधिक मास
मनहरण घनाक्षरी
**
चंद्र मास की चाल में,तीन वर्ष के काल में,
मलिन दिन मध्य में ,मलमास जानिए ।।
वर्जित त्योहार हुए,मंद खरीदार हुए,
नियम ऐसे क्यों हुए ,शुभ पहचानिए।।
पूजा पाठ धर्म करें,दान श्रेष्ठ कर्म करें,
मास पुरुषोत्तम है,विष्णु को मनाइए ।।
चिंतन मनन करें,वेद का श्रवण करें,
पंचभूत शरीर को,तप में लगाइए।।
अनिता सुधीर आख्या
Friday, September 18, 2020
निजीकरण
Tuesday, September 15, 2020
चलते चलते
'शब्द युग्म '
चलते चलते
चाहों के अंतहीन सफर
मे दूर बहुत दूर चले आये
खुद ही नही खबर
क्या चाहते हैं
राह से राह बदलते
चाहों के भंवर जाल में
उलझते गिरते पड़ते
कहाँ चले जा रहे है ।
कभी कभी
मेरे पाँवों के छाले
तड़प तड़प पूछ लिया करते हैं
चाहतों का सफर
अभी कितना है बाकी
मेरे पाँव अब थकने लगे है
मेरे घाव अब रिसने लगे है
आहिस्ता आहिस्ता ,रुक रुक चलो
थोड़ा थोड़ा मजा लेते चलो।
हँसते हँसते
बोले हम अपनी चाहों से
कम कम ,ज्यादा ज्यादा
जो जो भी पाया है
सहेज समेट लेते है
चाहों की चाहत को
अब हम विराम देते है
सिर्फ ये चाह बची है कि
अब कोई चाह न हो ।
अनिता सुधीर
Sunday, September 13, 2020
हिंदी
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
राजभाषा हिंदी को समर्पित सुमन
छंद की विभिन्न विधाओं से अपनी बात आप तक पहुँचाने का छोटा सा प्रयास करा है।
#मुक्तक
अपनों के ही मध्य में,ढूँढ रही अस्तित्व।
एक दिवस में बाँध के,निभा रहे दायित्व।।
शिक्षा की नव नीति से,लगी हुई उम्मीद,
रहे श्रेष्ठतम हिन्द में,हो इसका स्वामित्व।।
बनती खिचड़ी अधपकी,रहा अधूरा ज्ञान।
दो नावों पर पैर रख,छेड़ रहे हैं तान ।।
हीन भावना छोड़िये,करिये इस पर गर्व
हिंदी हिंदुस्तान है,करना है उत्थान।।
#कुंडल छंद
12,10 अंत दो गुरु
यति के पूर्व और बाद में त्रिकल
हिंदी मान सम्मान,भाल सजे बिंदी।
शिल्प लय रस व्याकरण,सजा रहे हिंदी।।
शब्द के भंडार में,भाव निहित होते।
मत दिवस में बाँधिये,लगा जलधि गोते।।
कवियों की कलम लिखे,हिन्द देश बोली।
हिंदी इतिहास लिए,सरस काव्य झोली।।
अवधी ब्रज भोजपुरी,रूप रख निराला।
एकता के सार में,गूँथ रही माला ।
#सवैया
विधान- *मत्तगयंद सवैया*
भगण ×7+2गुरु, 12-11 वर्ण पर यति चार चरण समतुकान्त।
*मतगयंद सवैया*
भोजपुरी ब्रज मैथिल में सज,अद्भुत भाव समाहित हिंदी।
छंद विधा लय शिल्प सजा रस,रूप अनूप रहे सम बिंदी।
काव्य रचा कर श्याम सखा पर,घूम रही बन प्रीत कलिंदी।
मान बढ़ा नित उन्नत होकर,पश्चिम बोल करो अब चिंदी।।
#दोहा छंद
संवाहक है भाव की, उन्नत हिंदी रूप।
ब्रज अवधी हरियाणवी, रखती रूप अनूप।।
Iभारत के परिवेश में,मौलिकता है दूर।
निज भाषा संवाद से, दर्प विदेशी चूर।।
शुद्ध वर्तनी में सजी,शुद्ध व्याकरण सार ।
सकल विश्व में हो रहा,इसका खूब प्रचार।।
#कुंडलिया
हिंदी भाषा राष्ट्र की,देवनागरी सार।
उच्चारण आसान है,भरा शब्द भंडार।।
भरा शब्द भंडार,रही संस्कृत हमजोली।
भौगोलिक विस्तार,सभी बोलें ये बोली।।
मास सितम्बर खास,सजी माथे जब बिंदी।
ले उर्दू का साथ,मस्त है भाषा हिंदी।।
#दोहा गजल
हिंदी ही अस्तित्व है,गहन भाव यह बोल।
रची बसी मन में रही,शुचिता ले अनमोल।।
हिन्दी का वन्दन करें,हो इसका उत्थान,
मधुरम मीठे बोल दें,कानों में रस घोल।
कबिरा के दोहे सजे,सजा प्रेम रसखान,
देवनागरी की लिखीं,कृतियाँ करें हिलोल।
हिन्दी ही अभियान हो,हिन्दी हो अभिमान
नहीं बदलता फिर कभी,भाषा का भूगोल।
सजे शीश पर ये सदा,हिंदी हिंदुस्तान,
एक दिवस में बाँध के,रहे चुकाते मोल।
#नवगीत
राजभाषा ले लकुटिया
पग धरे हर द्वार तक
राह में अवरोध अनगिन
हीनता का दंश दें
स्वामिनी का भाव झूठा
मान का कुछ अंश दें
ये दिवस की बेड़ियां भी
कब लड़ें प्रतिकार तक।।
हूक हिय में नित उठे जो
सौत डेरा डालती
छीन कर अधिकार वो फिर
बैर मन में पालती
कष्ट का हँसता अँधेरा
बादलों के पार तक।।
अब घुटन जो बढ़ रही है
कंठ का फन्दा कसा
खोल उर के पट सभी अब
धड़कनों में फिर बसा
अब अतिथि की वेशभूषा
छल रही श्रृंगार तक।।
#रोला छन्द
हिंदी हो अभिमान,यही पहचान हमारी।
करें आंग्ल को दूर,मात दें उसे करारी।।
हो इसका उत्थान,लगी है दोहाशाला।
करिये सभी प्रयास,सजा कर हिंदी माला।।
**
#सरसी छंद आधारित गीत
"हिन्दी है अस्तित्व हमारा" ,गहन भाव ये बोल।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
लिखी भक्ति मीरा की इसमें,लिखा प्रेम रसखान,
कबिरा के दोहों से सजती ,भाषा मातृ महान ।
माखन,दिनकर महादेवि की ,कृतियां करें हिलोल।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....
देवनागरी भाषा अपनी,रचते छन्द सुजान ,
चुन चुन कर ये भाव सजाती ,हिन्दी है अभिमान।
नहीं बदल पायेगा कोई ,भाषा का भूगोल ।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....
हिन्दी का वन्दन अभिनन्दन, हिन्दी हो अभियान,
एक दिवस में क्यों बाँधें हम ,हिन्दी हिन्दुस्तान।
मधुरम मीठी भाषा वाणी,रस देती है घोल ।
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।।
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" .....
हिन्दी है अस्तित्व हमारा" ,गहन भाव ये बोल,
माथे पर की बिंदी जैसी, शुचिता ले अनमोल ।
#छंद मुक्त
रचनाकार का हिंदी से वार्तालाप
क्यों हो क्लान्त शिथिल तुम
क्यों हो आज व्यथित तुम
ऊंचाइयों तक पहुँच
किस भाव से ग्रसित हो तुम ।
...आज के हालात पर
चीत्कार करता मेरा मन
होता जब अधिकारों का हनन
अपनों में जब पराये हो जाएं
विदेशी आ मुझे हीन कहें
सीमाओं, दिवस मे
बांध दिया जाए
तब वेदना से ग्रसित हो
बिंधता है मेरा तन ।
.....निर्मूल है तुम्हारी व्यथा
प्राचीनतम गौरवमयी
इतिहास रहा है तुम्हारा
कोई छीन नही सकता
आकर,अधिकार तुम्हारा
पहला शब्द तोतली भाषा
माँ के उच्चारण में हो तुम,
सम्प्रेषण के सशक्त
माध्यम में हो तुम
जन जन में चेतना का
संचार करती हो तुम
कवियों की वाणी हो तुम
रस छंद अलंकार से सजी तुम
संस्कृत उर्दू बहनें तुम्हारी
अंग्रेजी है अतिथि तुम्हारी
साथ साथ मिल कर रहो
एक दिवस का क्षोभ न करो
तुम हमारी शान हमारी पहचान
प्रतिदिन करते है तुम्हारा सम्मान
पर आज तुम्हें देते विशेष स्थान
हम हिंदी से ,हिंदी हिन्दोस्तान ।
अनिता सुधीर आख्या
Tuesday, September 8, 2020
फिर पढ़ाई भी तरसती
नवगीत
*फिर पढ़ाई भी सिसकती*
पाठशाला मौन है अब
फिर पढ़ाई भी सिसकती
प्रार्थना के भाव चुप हैं
राष्ट्र जन गण गीत तरसे
पंजिका पर हाजिरी की
कब मधुर आवाज बरसे
श्यामपट खाली पड़े हैं
बात खड़ियों को खटकती।।
मुस्कराहट रूठती है
खेल सूने से खड़े हैं
वो जुगत जलपान वाली
आज औंधे मुख पड़े हैं
कुर्सियों पर धूल जमती
प्रेत की छाया भटकती।।
भेलपूरी कौन लेता
खोमचे की है उदासी
छूटते अब मित्र साथी
मस्तियाँ फिर लें उबासी
खूँटियों पर वस्त्र लटके
टीस सी अंतस कसकती।।
अनिता सुधीर आख्या
Monday, September 7, 2020
पितृ पक्ष
पितरागमन
Saturday, September 5, 2020
शिक्षक
नमन मंच
*शिक्षक*
**
ज्ञान आचरण दक्षता,शिक्षा का आधार।
करे समाहित श्रेष्ठता, उत्तम जीवन सार।।
शिक्षक दीपक पुंज है,ईश्वर का अवतार।
शिक्षक अपने शिष्य को,देते ज्ञान अपार।।
निर्माता हैं देश के,उन्नत करें समाज।
रखते कल की नींव ये,करें नया आगाज।।
अनगढ़ माटी के घड़े,शिक्षक देते ढाल।
मार्ग प्रदर्शक आप हैं,उन्नत करते भाल।।
पेशा उत्तम जानिए,गढ़ते मनुज चरित्र।
आशा का संचार कर,करते कर्म पवित्र।।
पथ प्रशस्त करते सदा,मन में भरें प्रकाश।
नैतिकता के पाठ से,है विस्तृत आकाश।।
परम्परा गुरु शिष्य की,रही बड़ी प्राचीन।
ध्येय सिद्धि को साधने,सदा रहे थे लीन।।
हृदय व्यथित हो देखता,शिक्षा का व्यापार।
फैल रहा इस क्षेत्र में ,कितना भ्रष्टाचार।।
अपने शिक्षक को करूँ, शत शत बार प्रणाम।
जिनके संबल से मिला,जीवन को आयाम।।
मैं शिक्षक के रूप में,श्रेष्ठ निभाऊँ धर्म।
देना ये आशीष प्रभु,समझूँ शिक्षा मर्म।।
अनिता सुधीर आख्या
Wednesday, September 2, 2020
चंचल मन
चंचल मन को गूँथना
सबसे टेढ़ी खीर
**
घोड़े सरपट भागते
लेकर मन का चैन
आवाजाही त्रस्त हो
सुखद चाहती रैन
उछल कूद कर कोठरी
बनती तभी प्रवीर।।
चंचल मन..
भाड़े का टट्टू समझ
कसते नहीं लगाम
इच्छा चाबुक मार के
करती काम तमाम
पुष्पित हो फिर इन्द्रियाँ
चाहें बड़ी लकीर।।
चंचल मन..
भरी कढ़ाही ओटती
तब जिह्वा का स्वाद
मंद आँच का तप करे
आहद अनहद नाद
लोक सभी तब तृप्त हो
सूत न खोए धीर।।
चंचल मन..
अनिता सुधीर आख्या