तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Saturday, March 28, 2020

स्त्री

पेंडुलम

लिये चित्त में शून्यता
रही सदा निर्वात,
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।

तन कठपुतली सा रहा
थामे दूजा डोर ,
सूत्रधार बदला किये
पकड़ काठ की छोर
मर्यादा घूँघट ओढ़ती
सहे कुटिल आघात
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।

चली ध्रुवों के मध्य ही
भूली अपनी चाह
तोड़ जगत की बेड़ियां
चाहे सीधी राह,
ढूँढ़ रही अस्तित्व को ,
बहता भाव प्रपात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।

जिसके आँचल के तले
सदा रही हो छाँव
सदियों से कुचली गयी
आज माँगती ठाँव
सूत्रधार खुद की बने
पीत रहे क्यों गात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।

अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग




























"

Wednesday, March 25, 2020

नव संवत


नव संवत नव वर्ष

मुक्तक
***
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा,ये हिन्दू नववर्ष।
नव संवत प्रारंभ है ,हो जीवन में हर्ष ।।
नाम 'प्रमादी' वर्ष में ,बनते 'बुध' भूपाल,
मंत्री बन कर चंद्रमा,करे जगत उत्कर्ष ।।
***
गुड़ी ,उगाड़ी पर्व अरु,भगवन झूले लाल।
नौ दिन का उत्सव रहे ,नव संवत के साल।।
रचे विधाता सृष्टि ये ,प्रथम विष्णु अवतार ,
सतहत्तर नव वर्ष में ,उन्नत हो अब काल।।
***
नौरातों  में प्रार्थना ,माँ आओ  उर धाम ।
करे कलश की स्थापना,पूजें नवमी राम ।।
कष्टहारिणी मातु का ,वंदन बारम्बार ,
कृपा करो वरदायिनी,पूरे  मङ्गल काम ।।
***
धर्म ,कर्म उपवास से ,बढ़ता मन विश्वास।
अन्तर्मन की  शुद्धता ,जीवन में उल्लास।।
पूजें अब गणगौर को ,मांगे अमर सुहाग,
छोड़ जगत की वेदना,रखिये मन में आस।।
**
कली ,पुष्प अरु मंजरी,से सुरभित संसार ।
कोयल कूके बाग में ,बहती मुग्ध बयार ।।
पके अन्न हैं खेत में ,छाये नव  उत्साह ,
मधुर रागिनी छेड़ के,धरा करे श्रृंगार ।।

अनिता सुधीर आख्या













Tuesday, March 24, 2020

वर्तमान



वर्ण  नाचते झूम झूम के
देखो ता ता थैया
भाव बुलाते ताल बजा के
गीत लिखो अब भैया ।

खड़ी रात की दीवारें हैं
पड़ा  सूर्य पर गरदा
शोर मचाता श्वान चीख के
फटा कान का परदा
दृश्य कौंधता उस मरघट का
नहीं  मिली जब शैया
कैसे रच दूँ  गीत अनोखा
तुम्हीं बताओ भैया।।

काल खंड की  प्रस्तर मूरत
बहती दृग से सरिता
बड़ी उम्र से सूनी सड़कें
कौन रचेगा कविता
गीत रचा तू प्राण फूँक दे
बाट जोहती  मैया।।
कैसे रच दूँ  गीत अनोखा
तुम्हीं बताओ भैया।।

सभी जला दें दुख के कंबल
तमस हृदय को चिरता
चाँद कला की कारागृह अब
देख!रुपैया गिरता
मेघ छँटे उर विश्वास जगा
मोर नाचते  छैया।।
नवल धवल हो सुखद सबेरा
तभी लिखूंगा भैया।।


वर्ण  नाचते झूम झूम के
देखो ता ता थैया
भाव बुलाते ताल बजा के
गीत लिखो अब भैया ।

©anita_sudhir

Sunday, March 22, 2020

आह्वान



रोला छन्द
***
रहें घरों में कैद ,दवा ये उत्तम जानें ।
संकट में है राष्ट्र ,बात मुखिया की मानें।
बनें जागरूक आप ,नहीं अब विचलित होना ।
करें योग अरु ध्यान ,हराना अब कोरोना ।

सामाजिक अभियान ,निभाओ जिम्मेदारी ।
उत्तम करो विचार ,छिपाओ मत बीमारी ।
योद्धा हैं सब आज,सजग प्रहरी अब बनिये।
कोरोना का नाश,सभी मिल जुल कर करिये ।

मचता हाहाकार,काल आपात लगाया।
कोरोना का वार,बंद बाजार कराया ।
भरो नहीं भंडार ,नागरिक उत्तम बनना ।
संकट में सब साथ ,मनन ये सबको करना।

नहीं प्राण का मोह ,लगे परहित में रहते ।
नमन उन्हें सौ बार,कष्ट वो कितने सहते ।
प्रकट करें आभार ,बजायें मिल कर ताली।
भाव एकता सार ,बताती बजती थाली ।


Friday, March 20, 2020

गीतिका

#कनिका कपूर आक
**

पढ़े लिखों को देखिये,हो गयी बुद्धि खाक।
नेता मंत्री मौज में,शहर हुआ नापाक ।।

बोझ व्यवस्था पर बढ़ा ,बढ़ता मन में क्षोभ,
क्षणिक लाभ ये देखते,जनता खड़ी अवाक ।

निम्न कोटि की सोच ने ,किया हाल बेहाल,
कारागृह में डालिये ,बात कहूँ बेबाक ।

रोजी रोटी बंद है, होती बंद दुकान,
कैद घरों में हो गये ,मारो एक फटाक।

मुसीबतें कितनी बढ़ी,कितना फैला रोग ,
शर्म करो करतूत पर ,धूमिल करते नाक ।

©anita_sudhir

Thursday, March 19, 2020

वायरस


छंदमुक्त
***
वायरस ने जब पैर फैलाये
सिंहासन सबका डोल गया
"विषाणु" विष अणु बन कर
जब फ़ेफ़डों को लील गया ।
हथियारों के जखीरे धरे रहे
परमाणु बम जो डराते रहे
प्रोटीन परमाणु ने काम तमाम किया
दुनिया का जीना हराम किया ।
अहम् के किले कुछ  ऐसे ढहे
अस्तित्व के संकट में सब कुछ बहे
प्रत्यारोप ,प्रकोप का प्रलाप चला
प्रलय प्रवर्धन से अब हाल बुरा ।
ये भविष्य की बानगी भर है
प्रकृति से जो खिलवाड़ किया
जीव की जो  ये आह लगी
फिर दूर से प्रणाम किया ।
वायरस वायरल हो रहा
नकली सेनेटाइजर का बाजार बढ़ा
दिमाग में घुसे वायरस ने
मास्क का घिनौना खेल चला ।
कोरोना वायरस का रोना है
इसकी कोई दवा नहीं
आकार परिवर्तित हो जाये
प्रबंधन आसान हो जाये ।
पर ...दिमाग में घुसे कुटिल
वायरस के हमले से कौन बचाये
उसका एंटीवायरल कौन बनाये!


अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Monday, March 16, 2020

साँस



अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक  जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।
जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
अचेतन  में अस्ति से नास्ति
का जीवन है बड़ा कठिन ।
अस्थि ढांचा है पड़ा हुआ
मन देख कर ये द्रवित हुआ
ये कैसी परिस्थिति है,जब
जीवन अस्तित्व विहीन हुआ
सांसों के आने जाने के क्रम में
उपकरणों का सहारा है
अपनों के मुख पर  मायूसी
नियति से मानव हारा है ।



©anita_sudhir

Saturday, March 14, 2020

कोरोना



कुंडलिया
1)
कोरोना का कोप अब,फैल रहा अविराम।
ग्रसित 'सूक्ष्म' आतंक से,करने लगे प्रणाम।
करने लगे प्रणाम,बनें सब शाकाहारी ।
सामाजिक अभियान,निभायें जिम्मेदारी ।
अपना करें बचाव,बीज संस्कृति के बोना ।
बनें जागरुक आप ,नाश करिये कोरोना ।।
2)
विचलित होते सूरमा,कैसा फैला त्राण।
 कोरोना से हारते , संकट में हैं प्राण ।
संकट में हैं प्राण,करें अब मंथन चिंतन।
उत्तम करें विचार,रहे जीवन प्रद्योतन ।
भारत ऊँचा नाम,हवन है संस्कृति अतुलित।
स्वच्छ रहे अभियान,नहीं हो इससे विचलित ।
3)
कोरोना लक्षण जानिये,सर्दी छींक जुकाम।
श्वसन तंत्र की गड़बड़ी, करती काम तमाम।
करती काम तमाम,बने क्यों अब तक भक्षक।
लौंग पोटली साथ, स्वयं  ही बनिये रक्षक ।
बात नीति की मान,सदा हाथों को धोना ।
इस पर करें प्रहार,जीव नन्हां कोरोना।
4)
दुविधा ऐसी देखिये,बंद पड़ा व्यापार ।
अर्थ व्यवस्था डूबती,मचता हाहाकार।
मचता हाहाकार,काल आपात लगाया।
कोरोना का वार,बंद बाजार कराया ।
चौपट हैं उद्योग,मिलेगी कब तक सुविधा।
करिये नेक उपाय ,खत्म हो सारी दुविधा ।


अनिता सुधीर'आख्या'









Friday, March 13, 2020

सतरंगी

चोका 
***
बीते कालिमा
अब फैले लालिमा ,
आभा सिंदूरी
मृग ढूँढे कस्तूरी,
धूप गुलाबी
श्वेत हिम सजाती,
स्वर्णिम रश्मि
नीले सागर आती,
पावन धरा
 है उपवन हरा,
चूनर पीली
ओढ़ती हरियाली,
किंशुक लाली
पुरवा मतवाली ,
श्वेत चाँदनी
खिले पुष्प बैंगनी!
रूप प्रकृति
अनमोल संपत्ति
हो रक्षा ज्यों संतति।

स्वरचित
अनिता सुधीर







Thursday, March 12, 2020

भाईचारा

कुंडलिनी
1)
भाई चारा लुप्त अब ,कैसा बना समाज ।
मीठी वाणी बोल के ,खंजर चलते आज ।
खंजर चलते आज,बढ़ी रिश्तों में खाई ।
मिटा दिलों के रार,रहें निर्मल मन !भाई ।
2)
भाई चारा नींव ही ,भारत की पहचान।
सर्व धर्म समभाव से,बढ़े तिरंगा मान ।
बढ़े तिरंगा मान,पटे नफरत की खाई ।
उन्नत होगा देश ,रहें मिल जुल कर भाई ।

अनिता सुधीर

आईना


मुक्तक
1)
दर्पण तुम लोगों को , आइना दिखाते हो।
बड़ा अभिमान तुमको,कि तुम सच बताते हो।
बिना उजाले के क्या ,अस्तित्व रहा तेरा ,
दायें को बायें कर ,क्यों फिर इतराते हो ।
2)
जब तू करे श्रृंगार प्रिये ,माथे की बिंदिया बन जाऊँ।
हाथों का कँगना बन जाऊँ,ज़ुल्फों पर वेणी सज जाऊं।
तेरे रूप का प्रतिरूप बनूँ,छाया की प्रतिछाया बनूँ
अधरों की लाली बन  जाऊँ,मैं इक आईना बन जाऊं।।
3)
ये दर्पण पर सीला पन था,
या  छाया का पीला पन था ।
आईने को पोछा बार बार ,
क्या आँखो का गीलापन था ।
4)
हर शख्स ने चेहरे पर चेहरा लगा रखा है ।
अधरों पर हंसी, सीने में दर्द सजा रखा है ।
सुंदर मुखौटों का झूठ बताता है आईना ,
और मायावी दुनिया का सच छिपा रखा है।


अनिता सुधीर"आख्या"

Tuesday, March 10, 2020

नवगीत


14/14


अहम् की निरंकुश सत्ता
मिटाने जल्लाद आया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया

सूक्ष्म ने फिर सिर उठाया
रूप विकृत ले के आया
स्वाद भोजन तुम बढ़ाते
नाकों चने वो खिलाया
आह अब कीड़ों की लगी
वो यही अवसाद लाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया

कुम्भकरण की निंद्रा ले
संस्कृति सोई है कबसे
सत्य पगडण्डी ढूँढती
लाठी गांधी की कबसे
मौन 'चश्में' से झाँकता
कौन तन फौलाद लाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया।

सोच को नभ लेकर चलें
झूठ दम्भ में  प्रेम  पले
ईश मान अभिमानी को
बैठ चिता पर लगा गले,
जाग गयी ममता दिल में
चूनर औलाद उढ़ाया
होलिका जलती रही फिर
बच निकल प्रहलाद आया।

अनिता सुधीर




Monday, March 9, 2020

होली गीत


दोहा  छन्द
**
होली के त्यौहार में,जीवन का उल्लास ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास।।

बहन होलिका गोद में, ले बैठी प्रहलाद।
रहे सुरक्षित आग में ,ये  था आशीर्वाद  ।।
अच्छाई की जीत में ,हुई अहम् की हार ।
दहन होलिका में करें ,अपने सभी विकार ।।
अभिमानी के अंत का ,सदा रहा इतिहास
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।

टेसू लाली फैलती ,उड़ता रंग गुलाल ।
मन बासंती हो रहा ,फागुन रक्तिम गाल ।।
पीली सरसों खेत में,कोयल कुहुके डाल।
लगे झूलने बौर अब ,मस्त भ्रमर की चाल।।
बच्चों की टोली करे,पिचकारी की आस ।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।

होली के हुडदंग में ,बाजे ढोल मृदंग।
नशा भांग का बोलता,तन पर चढ़े तरंग।।
रंग लगाती सालियां, छिड़ी मनोरम जंग।
दीदी देखें क्रोध में,पड़ा रंग में भंग ।।
करें गली के लोग भी,भौजी सँग परिहास,
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।

होली क्या खेलें सखी ,मन में उठती पीर ।
देखा खूनी फाग जो,धरी न जाये धीर ।।
हुआ रंग आतंक का ,छिड़ी धर्म की रार ।
दहन संपत्ति का किया ,लगी आग बाजार।।
जन जन में सद्भावना,मिल कर करें प्रयास।
भेदभाव को छोड़ के ,रखें प्रेम विश्वास ।।

अनिता सुधीर "आख्या"
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

होलिका दहन




***

प्रत्येक युग का सत्य ये कह गए ज्ञानी प्रज्ञ
होलिका की अग्नि समझ जीवन का यज्ञ।
होलिका प्रतीक अज्ञान अहंकार का
विनाश  काल में  बुद्धि  विकार का।
प्रह्लाद  रूप धरे  निष्ठा विश्वास का
कालखंड का सत्य,भक्ति अरु आस का ।
होलिका दहन है,अंत राग द्वेष का
प्रतीक  है परस्पर सौहार्द परिवेश का।
होलिका की अग्नि में डाल दे समिधा
अहम त्याग कर ,मिटा दे सारी दुविधा
रक्षा कवच अब सत्कर्म का धारण कर
जीवन के यज्ञ में कर्म की आहुति भर
रंगोत्सव संदेश दे जीवन  सृजन का
फागुन है मास अब कष्ट हरण का
पलाश के वृक्ष में निवास देवता का
लाल चटक रंग है मन की सजीवता
टेसू के रंग से तन मन भिगो दो
अबीर गुलाल से द्वेष को भुला दो ।
अब कहीं होलिका में घर न जले
पलाश के रंग सा रक्त न बहे
फागुन मधुमास में प्रीतम सँग होली
मस्ती लुटाती  देवरों की टोली ।
ढोलक की थाप पर भांग नशा छाया
फागुन का यौवन मन हरषाया ।।
अब कहीं  होलिका में घर न जले
पलाश के रंग सा रक्त न बहे ।
पलाश के रंग सा रक्त न बहे ।


अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

















Sunday, March 8, 2020

नारी


कुंडलिनी
1)
वनिता ,नव्या ,नंदिनी, निपुणा बुद्धि विवेक ।
शिवा,शक्ति अरु अर्पिता ,नारी रूप अनेक ।
नारी रूप अनेक, रहे अविरल सम सरिता ।
सकल जगत का मान,सृजनकारी है वनिता ।
2)
नारी दुर्गा रूप को ,अबला कहे समाज।
पहना कर फिर बेड़ियां,निर्बल करता आज ।
निर्बल करता आज,बनो मत अब बेचारी
अपनी रक्षा आप ,सदा तुम करना नारी।।
3)
सहना मत अन्याय को,इससे बड़ा न पाप।
लो अपना अधिकार तुम,छोड़ो अपनी छाप ।
छोड़ो अपनी छाप  ,यही है उत्तम गहना ।,
मत करना अब पाप,कभी मत इसको सहना ।
4)
सरिता सम नारी रही,अविरल रहा प्रवाह।
जन्म मरण दो ठौर की ,बनती रहीं गवाह ।
बनती रहीं गवाह,इन्हीं से जीवन कविता ।
सदा करें सम्मान ,रहे निर्मल ये सरिता ।
5)
नारी तुम हो श्रेस्ठतम,तुम जीवन आधार ।
एक दिवस में तुम बँधी,माँगों क्यों अधिकार।
माँगों क्यों अधिकार,निभाओ भागीदारी ।
परम सत्य ये बात ,रहे पूरक नर नारी।

अनिता  सुधीर आख्या

Saturday, March 7, 2020

अग्निशिखा

दीपशिखा बनकर सदा जली ,मेरे पथ पर रहा अंधेरा,
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।


कितने धागे टूटा करते ,सूखे अधरों को सिलने में,
पहर आठ अब तुरपन करते,क्षण लगते कुआं भरने में,
रिसते घावों की पपड़ी से,पल पल बखिया वही उधेरा ,
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।

पुष्प बिछाये और राह पर,शूल चुभा वो किया बखेरा
दुग्ध पिला कर पाला जिसको,वो बाहों का बना सपेरा ।
पीतल उसकी औकात नहीं,गढ़ना चाहे स्वर्ण  ठठेरा
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा सुख चैन लुटेरा।


बन कर रही मोम का पुतला,धीरे धीरे सब पिघल गया
अग्निशिखा अब बनना चाहूँ,कोई मुझको क्यों कुचल गया
अब अंतस की लौ सुलगा कर,लाना होगा नया सवेरा ।
लपट बना कर चिंगारी की ,लूट रहा था चैन लुटेरा ।

दीपशिखा,....

#हिंदी _ब्लॉगिंग

औरतें

ये खामोश ,मूक  औरतें
ख्वाहिशों का बोझ ढोते
सदियों से वर्जनाओं मे जकड़ी
परम्पराओं और रुढियों
की बेड़ियों मे बंधी
नित नए इम्तिहान से गुजरती
हर पल  कसौटियों पर परखी जाती
पुरुषों के हाथ का खिलौना बन
बड़े प्यार से अपनों से ही छली जाती
बिना अपने पैरों पर खड़े
बिना रीढ़ की हड्डी के,
ये अपने पंख पसारती
कंधे से कंधा मिला कर चलती
सभी जिम्मेदारियाँ निभाती
खामोशी से सब सह जाती
आसमान से तारे तोड़ लाने
की हिम्मत रखती है
तभी नारी वीरांगना कहलाती है ।
ये क्या एक दिन की मोहताज है..
नारी !गलती  तो तुम्हारी है
बराबरी का अधिकार माँग
स्वयं को तुम क्यों कम आँकती
तुम पुरुष से श्रेष्ठ हो
बाहुबल मे कम हो भले
बुद्धि ,कौशल ,सहनशीलता
मे श्रेष्ठ हो तुम
अद्भुत अनंत विस्तार है तुम्हारा
पुष्प  सी कोमल हो
चट्टान सी कठोर हो
माँ  की लोरी ,त्याग मे हो
बहन के प्यार में हो
पायल की झंकार हो तुम
बेटी के मनुहार मे हो
नारी !नर तुमसे है
सृजनकारी हो तुम
अनुपम कृति हो तुम
आत्मविश्वास से भरी
अविरल निर्मल हो तुम
चंचल चपला मंगलदायिनी हो तुम
नारी !वीरांगना हो तुम।
©anita_sudhir

Thursday, March 5, 2020

किताब



मुक्तक
1)
गुणी जनों ने लिख दिये ,कितने सुंदर तथ्य।
कड़ा परिश्रम जानिये,लिखा हुआ जो कथ्य।
आहुति देते ज्ञान की,बनती एक किताब ,
आत्मसात कर तथ्य का ,करें अनुसरण पथ्य ।
2)
रही किताबें साथ में ,बन कर उत्तम मित्र।
भरें ज्ञान भंडार ये ,लिये जगत का इत्र ।
 इनका महत्व जान के,पढ़िए नैतिक पाठ ,
गीता ,मानस से सजे ,सुंदर जीवन चित्र ।
3)
जीवन ऐसा ही रहा ,जैसे खुली किताब,
प्रश्नों के फिर क्यों नहीं,अब तक मिले जवाब।
अर्पण सब कुछ कर दिया,होती जीवन साँझ,
सुलझ न पायी जिंदगी,ओढ़े रही नकाब।
4)
पुस्तक के ही पृष्ठ में,स्मृतियाँ मीठी शेष ।
प्रेम चिन्ह संचित रखे,विस्मृत नहीँ निमेष ।
वो किताब जब भी पढ़ी,मिलते सुर्ख गुलाब,
खड़े सामने तुम हुए ,रखे  पुराना भेष ।।
5)
काल आधुनिक हो गया,बात बड़ी गंभीर ।
कमी समय की हो गयी ,नहीं बचा अब धीर।
पढ़ते अधुना यंत्र से ,छूते  नहीं किताब ,
समाधान अब ढूँढिये,मन में उठती पीर ।


अनिता सुधीर"आख्या"
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Tuesday, March 3, 2020

अवतार

कुंडलिया

त्रेता, द्वापर प्रभु लिये ,राम ,कृष्ण अवतार।
कलयुग में अब "कल्कि" बन,करो दुष्ट संहार ।
करो दुष्ट संहार ,दनुजता दूर भगाओ ।
हुई धर्म की हानि,मनुजता फिर से लाओ।
लिये कल्कि अवतार,बनें स्वयं युग प्रचेता ।
जन जीवन मुस्कान,यही युग होगा त्रेता ।
2)

क्रंदन अन्तरमन करे ,देख क्रूर व्यवहार,
जलती रहती बेटियाँ,देवी रुप अवतार ।
देवी रुप अवतार ,कोख में मारी  जाती।
सहती कितने कष्ट,न्याय की आस लगाती।
बेटी कुल की मान ,करें सब इनका वंदन ।
इन्हें मिले अधिकार,नहीं हो हिय में क्रंदन।

©anita_sudhir

गुब्बारे


कुंडलिनी
1)

गुब्बारे जब बेचते ,करें विनय !लो आप।
क्षुधापूर्ति को चाहिये,रहा अँगूठा छाप।
रहा अँगूठा छाप,तनय को दूँ सुख सारे।
हो उसका कल्याण ,नहीं बेचे गुब्बारे ।
2)
उसकी सुन कर बात यह, लो गुब्बारे आप।
नेक कार्य सहयोग हो ,करें दूर संताप ।
करें दूर संताप,व्यथा होती है सबकी ।
समझें गहरी बात ,मिटेगी पीड़ा उसकी ।
3)
बच्चे खेलें खेल जब,गुब्बारों के साथ।
रंग बिरंगे रूप में,सपने ले कर हाथ ।
सपने ले कर हाथ,नहीं टूटे ये कच्चे।
सुंदर सा संसार ,बसायें प्यारे  बच्चे ।
4)
सज्जा घर की हो रही ,जन्मदिवस है आज।
गुब्बारों को देख कर, बाबा छेड़ें साज ।
बाबा छेड़ें साज ,छिपातीं दादी लज्जा ।
पोते का परिहास ,देख मुख पर ये सज्जा ।
5)
गुब्बारे सम फूल के ,ऊँची भरी उड़ान ।
फुस्स हवा जब हो गयी,निकली सारी शान ।
निकली सारी शान,दिखे अब दिन में तारे।
करना मत अभिमान, फूट जाते गुब्बारे ।

Monday, March 2, 2020

तारे

तांका
5,7, 5,7,7
सितारे /तारे
**
1)
सितारे  भरी
झिलमिल चूनर
ओढ़े अम्बर!
चाँद सा प्रियवर,
लालिमा मुख पर ।
2)
काले बादल
तारों की टिमटिम
दुःख अस्थाई !
मेघों की रिमझिम ,
पल होंगे स्वर्णिम ।


अनिता सुधीर

Sunday, March 1, 2020

अपराधी कौन ?

.लघुकथा



       
****
शिशिर को परेशान देखकर अजय ने पूछा _क्या बात हो गयी भाई!
यार अखबार पढ़ कर मन खराब हो जाता है।देखो न भ्रष्टाचार में भारत कितने ऊँचे पायदान पर है।
अखबार दिखाते हुए बोला।
अजय...अरे भाई शांत हो जाओ।समाधान तो हम सब को मिल कर निकालना है।
शिशिर .. मेरे बचत पत्र की अवधि पूरी हो गयी है ,वो लेने जाना है, चल यार मेरे साथ ,बातें भी होती रहेंगी।
 
ये काम आज नही हो सकता ,आप कल आइयेगा
कहते हुए कर्मचारी  ने शिशिर की ओर देखा ।

शिशिर ..कुछ  चाय पानी के  लिये ले लो, पर मेरा काम जरा जल्दी करा  दो।

अजय शिशिर  को देख रहा था ।



अनिता सुधीर
#हिंदी _ब्लॉगिंग