पेंडुलम
लिये चित्त में शून्यता
रही सदा निर्वात,
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
तन कठपुतली सा रहा
थामे दूजा डोर ,
सूत्रधार बदला किये
पकड़ काठ की छोर
मर्यादा घूँघट ओढ़ती
सहे कुटिल आघात
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
चली ध्रुवों के मध्य ही
भूली अपनी चाह
तोड़ जगत की बेड़ियां
चाहे सीधी राह,
ढूँढ़ रही अस्तित्व को ,
बहता भाव प्रपात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
जिसके आँचल के तले
सदा रही हो छाँव
सदियों से कुचली गयी
आज माँगती ठाँव
सूत्रधार खुद की बने
पीत रहे क्यों गात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
"
लिये चित्त में शून्यता
रही सदा निर्वात,
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
तन कठपुतली सा रहा
थामे दूजा डोर ,
सूत्रधार बदला किये
पकड़ काठ की छोर
मर्यादा घूँघट ओढ़ती
सहे कुटिल आघात
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
चली ध्रुवों के मध्य ही
भूली अपनी चाह
तोड़ जगत की बेड़ियां
चाहे सीधी राह,
ढूँढ़ रही अस्तित्व को ,
बहता भाव प्रपात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
जिसके आँचल के तले
सदा रही हो छाँव
सदियों से कुचली गयी
आज माँगती ठाँव
सूत्रधार खुद की बने
पीत रहे क्यों गात।।
इत उत वो नित डोलती
लेकर झंझावात।
अनिता सुधीर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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