तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Wednesday, March 31, 2021

दोहे

बेल/लता

हुआ पुराना गोदना,है अब टेटू बेल।
अधुना युग की ये प्रथा,है पैसे का खेल।।

अमरबेल के रूप में,इच्छाओं का वास।
जीवन भर पोषण लिया,बना मनुज को दास।।

शंकर जी को प्रिय लगे,बेल धतूरा खास।
दुग्ध धार अर्पित करें,पूरी करते आस।।

शर्बत उत्तम बेल का,ठंडी है तासीर।
औषधि है सौ मर्ज की,हरे मनुज की पीर।।

वृक्ष तुल्य संबल मिला,सदा सजन के साथ।
लता बनी लिपटी रहूँ,ले हाथों में हाथ।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, March 28, 2021

होलिका दहन

 


नवगीत


होलिका दहन


आज का प्रह्लाद भूला

वो दहन की रीत अनुपम।।


पूर्णिमा की फागुनी को

है प्रतीक्षा बालियों की

जब फसल रूठी खड़ी है

आस कैसे थालियों की 

होलिका बैठी उदासी 

ढूँढती वो गीत अनुपम।।


खिड़कियाँ भी झाँकती है

काष्ठ चौराहे पड़ा जो

उबटनों की मैल उजली

रस्म में रहता गड़ा जो

आज कहती भस्म खुद से

थी पुरानी भीत अनुपम।।


बांबियाँ दीमक कुतरती

टेसुओं की कालिमा से

भावना के वृक्ष सूखे

अग्नि की उस लालिमा से

सो गया उल्लास थक कर

याद करके प्रीत अनुपम।।


अनिता सुधीर आख्या

लखनऊ





Saturday, March 27, 2021

होली

होली

उल्लाला उल्लाल है,फागुन रक्तिम गाल हैं।
कहीं लाज से लाल है,कहीं बाल की खाल है।।

मन बासंती हो रहा,कोयल कुहुके डाल है।
लगे झूलने बौर अब ,मस्त भ्रमर की चाल है।।

पिचकारी हो प्रेम की,जीवन होली रंग हो।
दहन कष्ट का हो सभी,नहीं रंग में भंग हो।।

रूप धरे विश्वास का,आया अब प्रह्लाद है।
अंत बुराई का सदा,यही गूँजता नाद है ।।

होली की इस अग्नि में,राग द्वेष सब भस्म हो।
कर्म यज्ञ हो जीवनी,जीवन की ये रस्म हो।

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, March 24, 2021

गीतिका

गीतिका-
आधार छंद - चौपाई 

ऋतु आयी लेकर खुशहाली।
चहुँ दिस फैली किंशुक लाली।।

उड़ते रंग हवाओं में जब 
झूम उठे फिर डाली डाली।।

तूफानों से क्या घबराना
रैना बीतेगी ये काली ।।

मनुज देह उपहार प्रभो का
बनें जगत उपवन के माली।।

परहित में जब तन लगता है 
भरी रहे फिर सबकी थाली।।

नेताओं की आयी होली 
पिचकारी भर देते गाली।।

प्रश्न प्रणाली पर वही करें
करते जो हैं नित्य दलाली।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, March 21, 2021

कविता

विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं



खुली गाँठ मन पल्लू की जब
पृष्ठों पर कविता महकी

बनी प्रेयसी शिल्प छन्द की
मसि कागद पर वह सोई 
भावों की अभिव्यक्ति में फिर
कभी पीर सह कर रोई
देख बिलखती खंडित चूल्हा
आग काव्य की फिर लहकी।।

लिखे वीर रस सीमा पर जब
ये हथियार उठाती है
युग परिवर्तन की ताकत ले
बीज सृजन बो जाती है
आहद अनहद का नाद लिये
कविता शब्दों में  चहकी।।

शंख नाद कर कर्म क्षेत्र में 
स्वेद बहाती खेतों में
कभी विरह में लोट लगाती
नदी किनारे रेतों में
रही आम के बौरों पर वह
भौरों जैसी कुछ बहकी।।

झिलमिल ममता के आँचल में 
छाँव ढूँढती शीतलता
पर्वत शिखरों पर जा बैठी
भोर सुहानी सी कविता
अजर अमर की आस लिए फिर
युग के आँगन में कुहकी।।

अनिता सुधीर आख्या


























Thursday, March 18, 2021

राष्ट्र गीत

वन्देमातरम

रक्त दौड़े बाजुओं में 
राष्ट्र का शुभ गीत गाकर
देश का इतिहास रचते
शौर्य में आनंद पाकर

भाव जागें देशहित में
गीत वंदेमातरम से
वंदना के श्लोक कहते
कर्म करिये फिर धरम से
ज्ञान दो माँ भारती अब
नींद से हमको उठाकर।।

कंठ गाते जोश को जब
नित नया बलिदान लिखते
प्राण फूँके पीढ़ियों ने
भारती गुणगान लिखते
यज्ञ की वेदी जली है
भूमि रज माथे चढ़ाकर।।

शस्य श्यामल हो धरा ये
स्वप्न पलते कोटि दृग में
फिर अमरता चाहती है
लक्ष्य लिखना सत्य पग में
सूर्य शशि वंदन  करें फिर
मंत्र सुफलां का सुनाकर।।

अनिता सुधीर आख्या

Sunday, March 14, 2021

मुँदरी

प्रेम चिन्ह संचित किये,लिए सुहानी याद।
मुँदरी की अब वेदना,सहती नित्य विवाद।।

मुँदरी में सजते रतन, बदलें नौ ग्रह चाल।
नीलम,पन्ना मूँगिया,टालें विपदा काल।।

बाँधे बंधन नेह के,ले हाथों में हाथ।
अनामिका मुँदरी सजा,चली पिया के साथ।।

हठ करती है प्रेयसी,मुँदरी दे दो नव्य।
त्रिया चरित को जानिए,खर्च करें फिर द्रव्य।।

नीर थाल में हो रहा,हार जीत का खेल।
मुँदरी की फिर हार में ,बढ़ा दिलों का मेल।।

अनिता सुधीर आख्या

Thursday, March 11, 2021

शिवरात्रि

**

फाग कृष्ण चौदस मने,महापर्व शिवरात्रि।
शक्ति मिलन अध्यात्म से,महापर्व शिवरात्रि।।

शिव गौरा के ब्याह का,आया शुभ दिन आज
मंदिर मंदिर सज गए ,महापर्व शिवरात्रि ।।

चाँद विराजे शीश पर,गले सांप का हार
नीलकंठ को पूजते,महापर्व शिवरात्रि।।

दैहिक भौतिक ताप को,भोले करते नाश 
बिल्वपत्र अक्षत चढ़े ,महापर्व शिवरात्रि।।

पंच तत्व का संतुलन,है शिवत्व आधार ,
वैरागी को साधिए ,महापर्व शिवरात्रि।।

आदि अंत अज्ञात है,अविरामी शिव नाथ।
कैलाशी उर में  बसे ,महापर्व शिवरात्रि।।

भस्म चिता की गात पर,औगढ़ भोलेनाथ 
रूप निराला पूजिये ,महापर्व शिवरात्रि ।।


अनिता सुधीर "आख्या"

Monday, March 8, 2021

स्त्री

गीतिका

स्त्री बाजार नहीं है।
वो व्यापार नहीं है।।

क्यों उपभोग किया है
वो लाचार नहीं है।।

नर से श्रेष्ठ सदा से
ये तकरार नहीं है।।

उसने मौन सहा जो
कोई हार नहीं है ।।

है परिवार अधूरा
जग आधार नहीं है

आँगन रिक्त रहे जब
फिर संसार नहीं है।

अनिता सुधीर आख्या

Saturday, March 6, 2021

गजल


**
बशर की लालसा बढ़ती नशे में चूर होता है
समय की शाख पर बैठा सदा मगरूर होता है

मशक़्क़त से कमा कर फिर निभा जो प्रीत को लेते
इनायत जब ख़ुदा की हो वही मशहूर होता है

समय के फेर में उलझे नियम क्यों भूल जाते सब
बहारें लौट आती हैं यही दस्तूर होता है 

रिहा अब ख्वाहिशें कर दो यहाँ कब आसमां मिलता
छुपाने से सुनो हर दर्द फिर नासूर होता है

नसीबों से मिले जो भी वही दिल से लगा लेना
हो उसकी रहमतें जीवन बशर पुरनूर होता है


अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, March 3, 2021

योग और स्वास्थ्य

दोहावली

तन साधन है कर्म का,मिला हमें उपहार।
स्वास्थ्य पूंजी जान कर,शुद्ध रखें आचार।।

स्वास्थ्य सुख की चाह में,मची योग की धूम।।
गर्व विरासत पर हमें,भारत माटी चूम ।

सूर्य किरण सँग जागिये,करिये आसन योग।
प्रकृति चिकित्सा खुद करे,उत्तम जीवन भोग।।

योग साधना चक्र की,मन हो मूलाधार।
स्वास्थ्य मन का श्रेष्ठतम, यही धर्म आधार।।

अग्नि तत्व मणिपुर सधे,योग साधना तंत्र।
साधक मन को साधते,जपें सूर्य के मंत्र ।।

करते प्रतिदिन योग जो ,रहें रोग से दूर।
श्वासों के इस चक्र से,मुख पर आए नूर ।।

आसन बारह जो करे,होता बुद्धि निखार ।
सूर्य नमन से हो रहा ,ऊर्जा का संचार ।।

पद्मासन में बैठ कर ,रहिये ख़ाली पेट।
चित्त शुद्ध अरु शाँत कर,करें स्वयं से भेंट।।

ओम मंत्र के जाप से ,होते दूर विकार।
तन अरु मन को साधता,बढ़े रक्त संचार।।


अनिता सुधीर आख्या