बेल/लता
हुआ पुराना गोदना,है अब टेटू बेल।
अधुना युग की ये प्रथा,है पैसे का खेल।।
अमरबेल के रूप में,इच्छाओं का वास।
जीवन भर पोषण लिया,बना मनुज को दास।।
शंकर जी को प्रिय लगे,बेल धतूरा खास।
दुग्ध धार अर्पित करें,पूरी करते आस।।
शर्बत उत्तम बेल का,ठंडी है तासीर।
औषधि है सौ मर्ज की,हरे मनुज की पीर।।
वृक्ष तुल्य संबल मिला,सदा सजन के साथ।
लता बनी लिपटी रहूँ,ले हाथों में हाथ।।
अनिता सुधीर आख्या