तितली के रंगीन परों सी जीवन में सारे रंग भरे चंचलता उसकी आँखों में चपलता उसकी बातों मे थिरक थिरक क

Monday, January 31, 2022

रंगमंच

 *

सुनते सुनते थक गया हूँ कि दुनिया रंगमंच है और तू किरदार.. 

 मैं ही सदैव क्यों किरदार बनूँ !

अब नहीं जीना मुझे ये जीवन.

मेरी डोर सदैव किसी के हाथ में क्यों रहे ...

कहते हुए अति क्रोध में चिल्लाया था "तन "

 मेरा अपना " तन " ...

आज  से मैं ही रंगमंच हूँ...

यदि मैं रंगमंच तो फिर किरदार कौन ?

अकुलाहट भरे " मन "  ने कोने से दबी आवाज में कहा अब मैं किरदार हूँ तुम्हारा..

तुम किरदार बन मनमानी करते रहे और पतन की ओर जा रहे हो !

मुझे तुम्हारे इस तन के रंगमंच पर  अपना किरदार  निभाना है और अभिनय को वास्तविक रूप देना है। 

बाहर की आवाजें कैमरा, लाइट ,साउंड, कट का शोर

कुर्सियों को खाली करता जा रहा है।

अब अन्तर्मन के लाइट और साउंड को सुन अभिनय करना है ..

नेपथ्य से नई आवाजें आने लगी हैं..



अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, January 26, 2022

गणतंत्र दिवस


 मातृभूमि अभिमान है,अमर तिरंगा शान।

जयभारत जयहिंद का,सब मिल करिये गान।।


स्वर्ण मुकुट हिमगिरि सजे,सागर पैर पखार।

मानचित्र अभिमान को,व्याघ्र सरिस व्यवहार।

संविधान इस देश का ,देता सम अधिकार ।

देश एक, ध्वज एक हो,मौलिकता हो सार ।।

संस्कृति उत्तम देश की,इस पर हैअभिमान।।

जयभारत जयहिंद का,सब मिल करिये गान।


सर्व धर्म सद्भाव हो ,करिये यही विचार।

भारत के निर्माण में ,रहे एकता सार ।।

मातृभूमि रज भाल पर ,वंदन बारम्बार,

लिये तिरंगा हाथ में,करते जय जयकार।

अनेकता में एकता ,भारत की पहचान।

जयभारत जयहिंद का,सब मिल करिये गान।।


श्वेत शांति अरु केसरी,रूप लिये बलिदान।

रंग हरा संपन्नता,भारत माँ पहचान ।।

खादी वस्त्र विचार है,रखिये इसका मान ।

देशी को अपनाइये,बदले हिंदुस्तान

स्वच्छता अभियान हो, जन जन का अभियान।

जयभारत जयहिंद का,सब मिल करिये गान।।।


देशप्रेम कर्तव्य हो ,देशभक्ति ही नेह।

पंचतत्व में लीन हों,ओढ़ तिरंगा देह।

अपने हित को साधिये,सदा देश उपरांत ।

देशप्रेम अनमोल है ,अडिग रहे सिद्धान्त।

माटी मेरे देश की,है मेरा अभिमान।।

जयभारत जयहिंद का,सब मिल करिये गान।।


अनिता सुधीर आख्या


Tuesday, January 25, 2022

अंधेर नगरी चौपट राजा

 पुरानी लोकोक्ति नए कलेवर में

आधुनिक युग में नए तेवर में


अंधेर नगरी चौपट राजा 

*टका सेर भाजी टका सेर खाजा*


और अब 


अंधेर नगरी चौपट राजा

*सवा सेर भाजी मुफ्त में खाजा* 


सभी खाते खिलाते मुफ्त में खाजा

चलो मिल बजाएं इनका बाजा ।


सद्गुणी आज के युग में मिलते नहीं

यदि मिल भी जाएं तो खिलते नहीं


चाटुकारिता में लोग आगे निकल गए

डार्विन सिद्धान्त के अब माने बदल गए ।


नैतिकता का बचा अब अर्थ कहाँ

व्यवस्था में  जीने में असमर्थ यहाँ।


नेताओं को लोभ जाति के वोट का

त्रासदी जनसंख्या के विस्फोट का


बिचौलिए मुफ्त में खाते हर स्तर पर 

गरीबी रखे  फिर कलेजे पर प्रस्तर।


नौकरशाही मुफ्त में खाती रही है

भूख करोडों की  मिटती नही है।


वतन की शान से सरोकार नही है

मीरचंद जैसे गद्दार सदा से यहीं है


काश ऐसा हो जाये


अंधेरी न नगरी रहे न चौपट राजा 

*टका सेर भाजी हो और चार टके का खाजा* 



अनिता सुधीर आख्या

Monday, January 24, 2022

वोट

 मैं वोट हूँ,  मैं वोट हूँ 

नीयत में जिसके खोट ,

उसे देता बड़ी चोट  हूँ

मैं वोट हूँ ,मैं वोट हूँ  ।


ये मेरी  है कथा ,पर

आजकल बड़ी व्यथा

जाति धर्म में  बाँट के

प्रलोभनों  की मार से

आरक्षण के धार  से

आरोपों के वार से

अनर्गल  प्रचार से

कर्जमाफी के शगूफे से

कोरोना के आंकड़े से

प्रमाण माँगने से

शवों की गिनती से

जब मुझे गिना जाने लगा

तो मैं  काँपने लगा हूँ 

मैं हाँफने लगा हूँ ।

अस्तित्व होते हुए भी 

शून्यता में खोने लगा हूँ 

मैं वोट हूँ ,मैं वोट हूँ  ।


लोकतंत्र का हथियार हूँ 

मतदाता का अधिकार हूँ 

नेताओं के गले की फाँस हूँ 

ई वी एम  का त्रास हूँ

मतदाता पत्र का अतीत हूँ

नोटा का वर्तमान हूँ

मैं वोट हूँ ,मैं वोट हूँ  ।


नोटा  अब बढ़ रहा है

नेताओं,जरा संभल जाना 

अब मेरी शक्ति बढ़ने लगी है

जनता को बेवकूफ न बना पाओगे 

अब अपने मुँह की खाओगे

राष्ट्रहित  में काम करोगे 

तभी मुझे तुम पाओगे।


मतदाताओं तुमसे कुछ कहना है 

अब चुपचाप नहीं सहना है 

तुम जागरूक हो जाओ

नेताओं के बहकावे  में न आओ

मेरा उपयोग करो 

मतदान करो ,मतदान करो,

मेरी शक्ति पहचानो

मैं लोकतंत्र की शक्ति हूँ

मैं वोट हूँ  ,मैं वोट हूँ ।

©anita_sudhir

Saturday, January 22, 2022

आंकड़े कागजों पर



आँकड़े कागजों पर
खूब फले फूले

बुधिया की आँखों में
टिमटिम आस जली
कोल्हू का बैल बना
निचुड़ा गात खली
कर्ज़े के दैत्य दिए
खूँटी पर झूले।।

गमछे में धूल बाँध
रंग भरे पन्ने
खेतों की मेड़ों पर
लगते हैं गन्ने
झुनझुना है दान का
नाच उठे लूले।।

मतपत्र बने पूँजी
रेवड़ी बाँट कर
फिर बिलखती झोपड़ी
क्यों रही रात भर
जय किसान ब्रह्म वाक्य
की हिलती चूलें।।

अनिता सुधीर

Friday, January 21, 2022

वेदना


 

अंतरयामी प्रभु सब जानते हैं ।अपने बनाये संसार की दशा देख उनकी वेदना और पीड़ा असहनीय है ,कर्मयोगी प्रभु मानव जाति को स्वयं कल्कि बनने का उपदेश दे रहे हैं।

इस को दिखाने का प्रयास

**

आहत है मन देख के  ,ये कैसा संसार।

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।


नौनिहाल भूखे रहें ,मुझे लगाओ भोग ,

तन उनके ढकते नहीं,स्वर्ण मुझे दें लोग।

संतति मेरी कष्ट  में,उनका जीवन तार 

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


नहीं सुरक्षित बेटियां ,दुर्योधन का जोर,

भाई अब दुश्मन बने,कंस हुए चहुँ ओर ।

आया कैसा काल ये ,मातु पिता हैं भार,

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


प्रेम अर्थ समझे नहीं ,कहते राधेश्याम,

होती राधा आज है,गली गली बदनाम।

रहती मन में वासना,करते अत्याचार ,

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


सुनो भक्तजन ध्यान से ,समझो केशव नाम,

क्या लेकर तू जायगा  ,कर्म करो निष्काम।

स्वयं कल्कि अवतार हो,कर सबका उद्धार,

कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।

आहत है मन ...


©anita_sudhir

Wednesday, January 19, 2022

दलबदल



गीत

 दलबदल
 
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

टिकट जब दूर होता है।
भरोसा धैर्य खोता है।।
कहाँ फिर ठीकरा फोड़े।
विधायक को कहाँ तोड़े।।
ठगी जनता भ्रमित सुनती
सभी ने झूठ जो गाया।।
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

लगाती दौड़ सत्ता जब।
मुसीबत में प्रवक्ता तब।।
कहाँ से तर्क वह लाए
कि बेड़ा पार कर पाए।
मची तकरार अपनों में
तुम्हीं ने ही अधिक खाया।।
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

बड़े ही धूर्त बैठे हैं ।
सभी के कथ्य ऐंठे हैं।।
बदलते रंग सब ऐसे।
मरें कब लाज से वैसे।।
कहानी पाँच वर्षों की
अजब यह दलबदल माया।।
चुनावों का समय आया।
पुराना दल कहाँ भाया।।

अनिता सुधीर आख्या























Tuesday, January 18, 2022

दर्पण

 

हाइकु


हाइकु 

दर्पण

1)

धुंधले बिम्ब

अश्रुपूरित नैन 

दोष दर्पण

2)

वक़्त दर्पण 

संघर्ष प्रतिबिम्ब

कर्म अर्पण ।

3)

बिना प्रकाश

अस्तित्वहीन शीशा

क्यों इतराये ।

4)

शुभचिंतक

दर्पण बन जाते 

राह दिखाते ।

5)

सत्य दर्शन

अन्तर्मन दर्पण 

हो समर्पण


अनिता सुधीर


Thursday, January 13, 2022

मकर संक्रांति



मकर संक्रांति

मकर राशि में सूर्य जब, करें स्नान अरु दान।

उत्सव के इस देश में, संस्कृति बड़ी महान ।।


सुत की मङ्गल कामना, माता करे अपार।

तिल लड्डू को पूज कर,करे सकट त्यौहार।।


मूँगफली गुड़ रेवड़ी,धधक रही अंगार ।

नृत्य भाँगड़ा लोहड़ी,करे शीत पर वार ।।


खिचड़ी पोंगल लोहड़ी, मकर संक्रांति नाम।

नयी फसल तैयार है, झूमें खेत तमाम ।।


रंग बिरंगी उड़ रही ,अब पतंग चहुँ ओर ।

मन पाखी बन उड़ रहा, पकड़े दूजो छोर।।


जीवन झंझावात में ,मंझा रखिये थाम ।

संझा दीपक आरती ,कर्म करें निष्काम ।।


उड़ पतंग ऊँची चली, मंझा को दें ढील।

मंझा झंझा से लड़े ,सदा रहे गतिशील।।


ऋतु परिवर्तन जानिये, नव मधुमास बहार।

पीली सरसों खेत में ,धरा करे शृंगार।।


उर में प्रेम मिठास से, लिखिए पर्व विधान।

संकट के बादल छँटें,आये नव्य विहान।।


अनिता सुधीर आख्या


Wednesday, January 12, 2022

मैं विवेकानंद...




मैं .......विवेकानंद बोल रहा हूँ

मैं बदलता भारत देख रहा हूँ

मैं युवा भारत की आहट सुन रहा  हूँ

मैं ये सोच आनंदित हो रहा हूँ 

   कि तुम

लक्ष्य निर्धारित कर ,कर्म पथ पर बढ़ चले हो

मार्ग में शूल हैं पर निडर चलते चले हो

सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर खड़े

सपनोँ को पूरा करने की ऊँची उड़ान भरे हो


मुझे तुम पर पूरा विश्वास है ,

पर

कभी ये देख काँप जाता हूँ

जब तुम्हें नशे की गिरफ्त में पाता हूँ

नारी का अपमान सहन न कर पाता हूँ

भ्रष्टाचार में लिप्त तुम्हें देख नहीं पाता हूँ

अपशब्द देश के लिये सुन नही पाता हूँ

हिंदी की अवस्था पर घबरा जाता हूँ।

संस्कृति के पतन पर व्यथित हो जाता हूँ



मैं  युवा भारत से आह्वान करता हूँ 

सांस्कृतिक विरासत को सहेज आगे बढ़ो

चरित्र निर्माण,पौरुष में सतत लगे रहो

तुम्हारे नाम पर भी दिवस के नाम  हो

सत्कर्म करो ऐसे, जग मे अमर  रहो

मैं ........विवेकानंद  आह्वान करता हूँ



अनिता सुधीर आख्या

Tuesday, January 11, 2022

तुम्हारे हाथ


तुम्हारे गर्म हाथों की गर्मी 
रूह पर जमी बर्फ पिघला देती है..
तुम्हारे हाथों की वो प्यार भरी थपथपाहट
सारे गिले शिकवे मिटा देती है..
शायद ये जानते हो तुम 
जानते हो न तुम..
फिर क्यों समेटे रहते हो अपने गर्म हाथ तुम..

Monday, January 10, 2022

विश्व हिंदी दिवस


विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

हिंदी

*मत्तगयंद सवैया*

।।१।।

छंद विधा लय शिल्प सजा रस,रूप अनूप समाहित हिंदी।।

भोजपुरी ब्रज मैथिल में सज,अद्भुत भाव प्रवाहित हिंदी।।

काव्य रचा कर श्याम सखा पर, प्रीत लिखे अवगाहित हिंदी।

कालजयी बन घूम रही शुभ,मानस शुद्ध सुवासित हिंदी।।

।।२।।

भारत की पहचान बनी अब,दिव्य ललाट सुशोभित हिंदी।

विस्तृत रूप लिए चलती नित, देश विदेश प्रचारित हिंदी।।

पोस रही इसको जब संस्कृत,है इतिहास प्रमाणित हिंदी।

मान बढ़ा नित उन्नत होकर,उत्तम भाष्य सुभाषित हिंदी।।


अनिता सुधीर आख्या


Saturday, January 8, 2022

बोझ

लघुकथा

अदिति ....  आप अपनी अल्मारी खोले क्या सोच रहीं  हैं। कुछ परेशान लग रहीं हैं आप ,क्या बात है माँजी!
पुनीता ....कुछ नहीं बेटा ,अपनी ख्वाहिशों और चाहतों का बोझ देख रही हूँ ।
अदिति ....  माँजी साफ साफ बताइए ,पहेलियां क्यों बुझा रही हैं  ,प्लीज बताइये न क्या हुआ!
पुनीता .....अल्मारी में भरी साड़ियां और कपड़े देख रही हूँ , बेटा ,आवश्यकता न होने पर भी कितनी ही साड़ियां  खरीदती रही । तुम्हारे  पापा ने कई बार कहा भी कि  इतनी फिजूलखर्ची ठीक नहीं है ।इसमें से तो कई साड़ियां  शायद एक दो बार ही पहनी हो ।
अब ये मन पर भी बोझ हो रहीं है । सोच रही हूँ मेरे बाद ......
अदिति ... माँ जी आप कुछ भी बोल देती हैं ऐसा न कहिये
पुनीता ...  चलो बेटा अब तुम मेरा बोझ कम करने में मेरी मदद  करो ।  बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें इन कपडों की  बहुत आवश्यकता  होगी ।
चलो उन्हें दे आते हैं , उनकी जरूरत भी पूरी हो जाएगी और मेरे मन का बोझ भी  कम हो जाएगा ।
संतुष्टि का  भाव  लिये वो साड़ियां निकालने लगी ...

अनिता सुधीर

Wednesday, January 5, 2022

गीतिका

आँकड़े देख जो आज डरता नहीं ।
चोट खाये बिना क्यों सँभलता नहीं ।।

जिंदगी चार दिन की कहानी बनी
आपदा काल अब भी खिसकता नहीं।।

भूल कर्त्तव्य अब कर रहे गलतियां,
देश का हाल उनको अखरता नहीं।।

चार जन से कहाँ दूरियाँ सब रखें,
मुख कवच भीड़ में आज लगता नहीं।।

वो गिनाने लगे नीति की ख़ामियां,
दूध का दाँत भी जब निकलता नहीं।।

दुश्मनों की कुटिल चाल रहती सदा
भूल क्यों वो रहे स्वार्थ टिकता नहीं।।

अनिता सुधीर आख्या

Saturday, January 1, 2022

ग़ज़ल


टूटते ख्वाब की जो कहानी बनी।

लफ़्ज़ बिखरी हुई जिंदगानी बनी।।


हर्फ दर हर्फ जो उम्र लिखती रही

क्यूं उसी कारवाँ की रवानी बनी।।


रात परछाईयों की सहमती दिखे

क्या नज़र भी अभी ख़ानदानी बनी।।


ग़म सिखाते चले मुस्कुराना हमें

ज़िंदगी फिर यही आसमानी बनी।।


राख जो चिठ्ठियों की छिपा कर रखी

याद उस दौर की अब निशानी बनी ।।


अनिता सुधीर