Monday, May 2, 2022

दोहे


दोहावली


बूढ़ा बरगद देखता, घर का आँगन लुप्त।

खड़ी मध्य दीवार में, नेह पड़ा है सुप्त।।


लाख यत्न शासक करे,बना नियम सौ-लाख।

कुछ की भूख करोड़ की, कहाँ बचे फिर साख।।


चिर प्रतिद्वंद्वी देश का,सदा सहा आघात।

छुरा पीठ में भोंक कर, करता मीठी बात।।


जन्म-मरण के मध्य में, है श्वासों का खेल।

साधक बन कर खेलिए, रखे जगत से मेल।।


पुस्तक के बँद पृष्ठ में, प्रेम चिन्ह जो शेष।

निमिष मात्र विस्मृत नहीं, दृष्टि रही अनिमेष।।


होता तर्क़ वितर्क जब, करिए नहीं कुतर्क।

बना सत्य को झूठ क्यों, करते बेड़ा ग़र्क़।।


गरज-बरस के शोर में, लुप्त करें सब तथ्य।

स्वार्थ सिद्धि ही ध्येय जब, कौन विचारे कथ्य।।


अनिता सुधीर

7 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-5-22) को "हुई मन्नत सभी पूरी, ईद का चाँद आया है" (चर्चा अंक 4419) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आ0

      Delete
  2. वाह! बहुत बढ़िया 👌
    सादर

    ReplyDelete

विज्ञान

बस ऐसे ही बैठे बैठे   एक  गीत  विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...