Sunday, June 26, 2022

कुछ यूँ ही

चाल पासा चल गया अभियान में
ढेर होते  सूरमा मैदान में।।

झूमता सा पद नशे में जब चला
दौड़ कुर्सी की लगी दालान में।।

चार दिन की चाँदनी धूमिल हुई
बीतती है उम्र भी पहचान में।।

मान कह के जो लिया तो क्या लिया
लीजिए इसको सभी संज्ञान में।।

नाम उनका ही अमर हो जाएगा
जो रहे नित सत्य के प्रतिमान में।।

शासकों का जब नया अवतार हो
नीतियाँ इतरा चलें उत्थान में।।

पाँव भी कब तक खड़े होंगे यहाँ
तीर सारे जब जुटे संधान में।।

अनिता सुधीर आख्या





Sunday, June 19, 2022

पिता



भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता


पाँव नन्हें याद में अब

स्कंध का ढूँढ़ें सहारा

उँगलियाँ फिर काँध चढ़ कर

चाहतीं नभ का किनारा

प्राण फूकें पाँव में वह

सीढ़ियाँ नभ तक बनाता।।

भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता


जोड़ता संतान का सुख

भूल कर अपनी व्यथा को

जब गणित में वो उलझता

तब कहें जूते कथा को

फिर असीमित बाँटने को

सब खजाना वो लुटाता।।

भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता।।


छत्रछाया तात की हो

धूप से जीवन बचाते

दुख बरसते जब कभी भी

बाँध छप्पर छत बनाते

और अम्बर हँस पड़ा फिर 

प्यास धरती की बुझाता।।

भाग्य की हँसती लकीरें

जब पिता उनको सजाता।।


अनिता सुधीर आख्या


Friday, June 17, 2022

कैक्टस के फूल



मरुथल में

एक फूल खिला 

कैक्टस का 

तपते रेगिस्तान में

दूर-दूर तक रेत ही रेत 

वहाँ खिल कर देता ये संदेश

विपरीत स्थितियों में

कैसे रह सकते शेष 

फूल खिला सबने देखा 

पौधे को किसने सोचा?

स्वयं को ढाल लिया

विपरीत के अनुरुप

अस्तित्व को बदला कांटो में

संग्रहित कर सके जीवन जल 

 और खिल सके पुष्प ।

ऐसे ही नही खिलता 

मानव बगिया मे कोई पुष्प,

माली को ढलना पड़ता है

परिस्थिति के अनुरूप ।।


अनिता सुधीर







 

Wednesday, June 15, 2022

जनसंख्या -पर्यावरण



भवन की फसल अब धरा पर खड़ी है।

मही ओढ़ मुख को व्यथा से पड़ी है।।


सदा वृक्ष शृंगार भू का बढाए

जगत संपदा भी इन्हीं से जड़ी है।।


इसी भाँति कटते रहे जो विटप सब

मनुज भूल की फिर सजा भी बड़ी है।।


प्रभावित हुआ जैव मंडल हमारा

बढ़ी जीव की अब अपेक्षा अड़ी है।।


प्रदूषण बढ़ा व्याधि बढ़ती रही नव

विदोहन कपट दृष्टि जब से गड़ी है।।


जटिल ये समस्या समाधान माँगे

हृदय वेदना द्वंद्व से नित लड़ी है।।


चलो पौध कुछ रोप आएँ धरा पर

मृदा बाँधने की यही शुभ घड़ी है।।


अनिता सुधीर आख्या


चित्र गूगल से साभार


Thursday, June 9, 2022

गीतिका

 

नियम-युद्ध उर ने लड़ा है।

उलझता हुआ-सा खड़ा है।।


समय चक्र की रेत में धँस

वहीं रक्तरंजित पड़ा है।।


रही भिन्नता कर्म में जब

भरा पाप का फिर घड़ा है।।


विलग भाव की नीतियों ने

तपन ले मनुज को जड़ा है।।


जमी धूलि कबसे पुरातन

विचारें कहाँ पल अड़ा है।।


सदी-नींव को जो सँभाले

बचा कौन-सा अब धड़ा है।।


लिए भाव समरस खड़ा जो

वही आज युग में बड़ा है।।


समर में विजय कर सुनिश्चित

जगत मिथ्य भू में गड़ा है।।



अनिता सुधीर आख्या












Sunday, June 5, 2022

पर्यावरण


 पर्यावरण/ वृक्षारोपण


प्राण वायु देता रहे ,विटप करे उपकार।।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।

वृक्ष काटते जा रहे  ,पारा हुआ पचास।
जीव जगत व्याकुल हुआ ,शीतलता का ह्रास।।
धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इसपर  गौर ।।
श्वसन तंत्र बाधित हुआ,पड़ा मनुज बीमार।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।।

क्षरण मृदा का जो रुके ,लगे बाढ़ पर रोक।
वृक्षों का रोपण करें,तभी मिटेगा शोक । ।
माटी को  बाँधे जड़ें  ,रोके मृदा कटाव ।
स्वच्छ नदी की तलहटी,रोके बाढ़ बहाव।।
विकट प्राकृतिक आपदा ,इस पर करें विचार।।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।।

औषध गुण भरपूर है,भोजन का भंडार।
देख भाल उत्तम करें,करिये प्यार दुलार।।
देव रूप में  पूजिये,वृक्ष धरा की शान।
संतति जैसे मानिये ,करें मान सम्मान।।
सरकारें लाचार हैं ,आप लीजिए  भार।
वृक्षारोपण सब करें,ये जीवन आधार।।

अनिता सुधीर आख्या 

रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं

 राम नवमी की  हार्दिक शुभकामनाएं दर्शन चिंतन राम का,हो जीवन आधार। आत्मसात कर मर्म को,मर्यादा ही सार।। बसी राम की उर में मूरत  मन अम्बर कुछ ड...