Wednesday, July 30, 2025

मुक्तक

मुक्तक

ग़मों को उठा कर चला कारवां है।

बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।

जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के

दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।


अनिता सुधीर आख्या 


4 comments:

जल प्लावन

नवगीत छिना घरौंदा! ममता तड़पी आंतों में जब अग्नि जली  फसल खड़ी इतराती थी जब आतंकी बरसात हुई खलिहानों की भूख बढ़ी थी और मनुज की मात हुई  कुपित म...