मुक्तक
ग़मों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।
जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।
अनिता सुधीर आख्या
प्रबोधिनी एकादशी *प्रबोधिनी एकादशी,आए कार्तिक मास।* *कार्य मांगलिक हो रहे,छाए मन उल्लास।।* शुक्ल पक्ष एकादश जानें।कार्तिक शुभ फल...
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद हरीश जी
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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