Thursday, June 9, 2022

गीतिका

 

नियम-युद्ध उर ने लड़ा है।

उलझता हुआ-सा खड़ा है।।


समय चक्र की रेत में धँस

वहीं रक्तरंजित पड़ा है।।


रही भिन्नता कर्म में जब

भरा पाप का फिर घड़ा है।।


विलग भाव की नीतियों ने

तपन ले मनुज को जड़ा है।।


जमी धूलि कबसे पुरातन

विचारें कहाँ पल अड़ा है।।


सदी-नींव को जो सँभाले

बचा कौन-सा अब धड़ा है।।


लिए भाव समरस खड़ा जो

वही आज युग में बड़ा है।।


समर में विजय कर सुनिश्चित

जगत मिथ्य भू में गड़ा है।।



अनिता सुधीर आख्या












11 comments:

  1. अति सुंदर एवं प्रभावशाली 💐💐💐🙏🏼

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 10 जून 2022 को 'ठोकर खा कर ही मिले, जग में सीधी राह' (चर्चा अंक 4457) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. प्रभावशाली सृजन

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  4. बहुत सुंदर सृजन
    बधाई

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  5. कमाल के भाव ... छोटी बहर की गज़ल सी ...
    लाजवाब है ...

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  6. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  7. प्रभावशाली वर्णन

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