Sunday, June 26, 2022

कुछ यूँ ही

चाल पासा चल गया अभियान में
ढेर होते  सूरमा मैदान में।।

झूमता सा पद नशे में जब चला
दौड़ कुर्सी की लगी दालान में।।

चार दिन की चाँदनी धूमिल हुई
बीतती है उम्र भी पहचान में।।

मान कह के जो लिया तो क्या लिया
लीजिए इसको सभी संज्ञान में।।

नाम उनका ही अमर हो जाएगा
जो रहे नित सत्य के प्रतिमान में।।

शासकों का जब नया अवतार हो
नीतियाँ इतरा चलें उत्थान में।।

पाँव भी कब तक खड़े होंगे यहाँ
तीर सारे जब जुटे संधान में।।

अनिता सुधीर आख्या





5 comments:

  1. अपनी समग्रता में यह ग़ज़ल निश्चय ही सराहनीय है।

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  2. उम्र ही बीत जाती है पहचान में सुंदर रचना

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  3. नाम उनका ही अमर हो जाएगा
    जो रहे नित सत्य के प्रतिमान में।।
    बेहतरीन ग़ज़ल!!

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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