Sunday, March 24, 2024

होलिका दहन

होलिका दहन


आज के प्रह्लाद तरसे
होलिका की रीत अनुपम।
कार्य में अब व्यस्त होकर
ढूँढते सब अतीत` अनुपम।

पूर्णिमा की फागुनी को
है प्रतीक्षा बालियों की
दूर जब संतान रहती
आस बुझती थालियों की 
होलिका बैठी उदासी 
ढूँढती वो गीत अनुपम।।
आज के प्रह्लाद..

खिड़कियाँ भी झाँकती है
काष्ठ चौराहे पड़ा जो
उबटनों की मैल उजली
रस्म में रहता गड़ा जो
आज कहता भस्म खुद से
थी पुरानी भीत अनुपम।।
आज के प्रह्लाद..

भावना के वृक्ष तरसें 
अग्नि की उस लालिमा से 
रंग जीवन के व्यथित हैं
टेसु लगते कालिमा से
सो गया उल्लास थक कर
याद करके प्रीत अनुपम।।
आज के प्रह्लाद..

अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ

नोट : होली त्योहार में बच्चे व्यस्तता के कारण घर नहीं आ पाते उस भाव को दिखाया है
होलिका दहन में उबटन लगा कर उसे अग्नि में डालने की प्रथा है

9 comments:

  1. अति उत्तम सृजन। होली की शुभकामनाएं

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  2. सुंदर सृजन, होली की शुभकामनाएँ !

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    1. हार्दिक आभार

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार आ0

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  4. शुभ हो होली सभी को सपरिवार

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    1. हार्दिक आभार आ0

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