वेदना
स्वप्न सुनहरे धोखा देकर,जा छिपते जग गलियारों में
तभी विवश हो बैठा मानव,भटक गया उर अंधियारों में
सुख पाने की आस लगाए,लगा रहा पाखंडी चक्कर
भीडतंत्र का बन कर किस्सा,प्राण गवाए जयकारों में।।
अनिता सुधीर आख्या
प्रबोधिनी एकादशी *प्रबोधिनी एकादशी,आए कार्तिक मास।* *कार्य मांगलिक हो रहे,छाए मन उल्लास।।* शुक्ल पक्ष एकादश जानें।कार्तिक शुभ फल...
सुन्दर
ReplyDeleteसुख पाने की आस लगाए,लगा रहा पाखंडी चक्कर
ReplyDeleteभीडतंत्र का बन कर किस्सा,प्राण गवाए जयकारों में।।
अंधभक्त और अंधश्रद्धा को क्या कहें..
इन पाखंडियों को भगवान मान जान की बाजी लगा रहे लोग...
समसामयिक लाजवाब सृजन
सादर आभार आ0
Deleteसादर आभार आ0
ReplyDelete"मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे ! मैं तो तेरे ही पास रे !
ReplyDeleteकहाँ-कहाँ सुख ढूंढता फिरा, आख़िर पाया फिर अपने ही पास ..
सादर आभार आ0
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