Wednesday, August 25, 2021

तुम्हारी आँखों में



जीवन का मनुहार, तुम्हारी आँखों में।
परिभाषित है प्यार, तुम्हारी आँखों में।।

छलक-छलक कर प्रेम,भरे उर की गगरी।
बहे सदा रसधार, तुम्हारी आँखों में।।

तुम जीवन संगीत, सजाया मन उपवन
भौरों का अभिसार, तुम्हारी आँखों में।।

पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया
खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।

रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल
करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।

किया समर्पण त्याग, जले बाती जैसे
करे भाव अँकवार, तुम्हारी आँखों में।।

जीवन की जब धूप, जलाती थी काया
पीड़ा का उपचार, तुम्हारी आँखों में।।

अनिता सुधीर आख्या

Friday, August 20, 2021

चीखें



चीखें
**
चीखें 
बच्चों की
अब सुनाई नहीं पड़ती 
खोमचे वाला 
गली से गुजरता है जब
गरीबी ने माँ को
चुप कराने का हुनर 
सिखा दिया होगा
*
खामोश शहरों की
चीखती रातें
चूड़ियों के टूटने की आवाज 
तन चीत्कार कर उठे
मुफलिसी में
बूढ़े माँ बाप की दवाईयाँ
और आत्मा की चीखें शांत
**
अनवरत 
अंदर चीखें रुदन करती हुईं
अधर मौन 
और फिर कागज चीखते हुए



अनिता सुधीर आख्या

Friday, August 13, 2021

कठपुतली

*कठपुतली*

आँख में अंजन दांत में मंजन 
नित कर नित कर नित कर
नाक में ऊँगली कान में लकड़ी 
मत कर मत कर मत कर"..
कितनी सरलता से हँस-हँसकर 
जीवन का पाठ पढ़ाती थी वो
दूसरों के हस्त संचालन से नाचती
काठ की कठपुतली थी वो...
जिज्ञासा थी बालमन में
कैसे डोर से बंधी ये नाचती होगी..
पर्दे के पीछे कमाल सूत्रधार का 
जो उंगलियों से उन्हें नचाता होगा...
जिज्ञासा अब शांत हो रही 
अब डोर है कितने अदृश्य हाथों में...
काठ के तो नहीं  
भावनाएं है
कुछ सपने 
कुछ आकांक्षाएं है..
निपुणता से संचालन करते हैं लोग 
परिवार धर्म मर्यादा रिश्तों के नाम पर
कितनी बखूबी से नचाते है लोग..
वो काठ की कठपुतली थी
दूसरों के इशारे पर नाचती थी वो 
और अब...

अनिता सुधीर आख्या

Wednesday, August 11, 2021

आरक्षण

कुंडलिया

पिछड़े अगले खेल में, संसद में सब एक।
अगले को पिछड़ा करें, कौन विचारे नेक।।
कौन विचारे नेक, जाति की सीढ़ी चढ़ते।
नीति नियम हों एक, तभी सब आगे बढ़ते।।
आरक्षण की चोट, लाभ से क्यों सब बिछड़े।
सबको कर दो उच्च, मिटा दो सारे पिछड़े।।


अवसर सबको ही मिले, यही विचारो आज।
आगे बढ़ना नीति में, उन्नत सकल समाज।।
उन्नत सकल समाज, मिले वंचित को सुविधा।
भारत में सब एक, करें क्यों इसमें दुविधा।।
होंगें तभी स्वतंत्र, नहीं हो कोई अंतर।
चलो समय के साथ, दिला दो सबको अवसर।।

अनिता सुधीर आख्या




Sunday, August 8, 2021

महिला हॉकी

पावन मंच को सादर नमन

गीतिका-

पायलों की रुनझुनों में,काल की टंकार हो तुम।
नीतियों की सत्यता में,स्वर्ण का आधार हो तुम।।

खो रहा अस्तित्व था जब, लुप्त होती भावना में,
आस का सूरज जगाए,भोर का उजियार हो तुम।।

जब छिपी सी धूप होती,तब लड़े वो बादलों से
लक्ष्य की इस पटकथा में,भाल का शृंगार हो तुम।।

साधनों की रिक्तता में,हौसले के साज रखती
खेल टूटी डंडियों में,प्रीति का अँकवार हो तुम।

रच रहा इतिहास नूतन,स्वप्न अंतर में सँजोये
कोटि जन के भाव कहते,देश का आभार हो तुम।।

अनिता सुधीर आख्या


देव दीपावली

दीप माला की छटा से,घाट सारे जगमगाएं। देव की दीपावली है,हम सभी मिल कर मनाएं।। भक्ति की डुबकी लगाएं,पावनी जल गंग में जब, दूर करके उर तमस को,दि...