Wednesday, August 25, 2021

तुम्हारी आँखों में



जीवन का मनुहार, तुम्हारी आँखों में।
परिभाषित है प्यार, तुम्हारी आँखों में।।

छलक-छलक कर प्रेम,भरे उर की गगरी।
बहे सदा रसधार, तुम्हारी आँखों में।।

तुम जीवन संगीत, सजाया मन उपवन
भौरों का अभिसार, तुम्हारी आँखों में।।

पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया
खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।

रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल
करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।

किया समर्पण त्याग, जले बाती जैसे
करे भाव अँकवार, तुम्हारी आँखों में।।

जीवन की जब धूप, जलाती थी काया
पीड़ा का उपचार, तुम्हारी आँखों में।।

अनिता सुधीर आख्या

13 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण ...
    क्या क्या न हो उनकी आँखों में ... उपचार से लेकर जीवन उनकी आँखों में ... लाजवाब ...

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  2. जी हार्दिक आभार

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  3. बेहद खूबसूरत रचना

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  4. बहुत भाव पूर्ण रचना।

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  5. आ0 हार्दिक आभार

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  6. किया समर्पण त्याग, जले बाती जैसे
    करे भाव अँकवार, तुम्हारी आँखों में।।

    जीवन की जब धूप, जलाती थी काया
    पीड़ा का उपचार, तुम्हारी आँखों में।।

    अनिता सुधीर आख्या....वाह,सुंदर भावों और एहसासों का भावपूर्ण सृजन ।

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  7. मनमोहक सृजन

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