चित्रकार की तूलिका,भरे गगन में रंग।
सूर्य उदय की लालिमा,रचती नवल प्रसंग।।
नित्य स्वप्न भी जागते,सूर्योदय के संग।
कनक रश्मियाँ घट लिए,भरे स्वप्न में रंग।।
कोदंड धनुष विधि लेखा का नेक कार्य ले, रघुवर वन को आए थे मर्यादा ने मर्यादा रख, अद्भुत अस्त्र उठाए थे धन्य-धन्य वह बाँस युगों तक, जिससे कोदंड...
अद्भुत! मनोहारी! अति-प्रशंसनीय सृजन.
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