सूर्य चमकता पर्दा डाले
सुप्त निशा के द्वार पटल पर
सूर्य चमकता पर्दा डाले
भोर खड़ी है अलसायी सी
धीरे धीरे सड़कें चलती
पूरब लेता फिर अँगड़ाई
सकल जगत की आशा पलती
एक सबेरा मन में उतरा
अब बीतेंगे दिन ये काले।।
घूँघट पट खोले भोर चली
कुछ सकुचाती इठलाती सी
कनक बटोरे अनगिन घट में
चले तुंग पर बलखाती सी
स्वर्ण रश्मियों की सौगातें
फिर पाकर झूमें मतवाले।।
ध्यान मग्न बैठे जड़ चेतन
वेद ऋचाएं नदियां सुनती
कलकल अविरल निर्मल मन की
अभिलाषाएं सपनें बुनती
केसरिया कहता अम्बर से
मिले धरा को नए उजाले।।
अनिता सुधीर आख्या