हार जीत
कुंडलियां
जीते भी हैं हार सम,लगे हार भी जीत।
लोकतंत्र अब देखता,कौन रहेगा मीत।।
कौन रहेगा मीत,सगा भी अवसर देखे।
राजनीति के रंग,बदलते कैसे लेखे।।
हुआ अचंभित देश,क्षोभ को सारे पीते।
नहीं कार्य का मोल,जाति में बॅंट कर जीते।।
अनिता सुधीर आख्या
सूर्य चमकता पर्दा डाले सुप्त निशा के द्वार पटल पर सूर्य चमकता पर्दा डाले भोर खड़ी है अलसायी सी धीरे धीरे सड़कें चलती पूरब लेता फिर अँगड़ाई सक...
सटीक !
ReplyDeleteसादर आभार आ0
Deleteआइए चलें अपना कर्तव्य निभाएं 😊
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