Thursday, June 20, 2024

भोर


 

सूर्य चमकता पर्दा डाले


सुप्त निशा के द्वार पटल पर

सूर्य चमकता पर्दा डाले


भोर खड़ी है अलसायी सी

धीरे धीरे सड़कें चलती

पूरब लेता फिर अँगड़ाई

सकल जगत की आशा पलती

एक सबेरा मन में उतरा

अब बीतेंगे दिन ये काले।।


घूँघट पट खोले भोर चली

कुछ सकुचाती इठलाती सी

कनक बटोरे अनगिन घट में

चले तुंग पर बलखाती सी

स्वर्ण रश्मियों की सौगातें

फिर पाकर  झूमें मतवाले।।


ध्यान मग्न बैठे जड़ चेतन

वेद ऋचाएं नदियां सुनती

कलकल अविरल निर्मल मन की

अभिलाषाएं सपनें बुनती

केसरिया कहता अम्बर से

मिले धरा को नए उजाले।।


अनिता सुधीर आख्या

6 comments:

  1. अद्भुत

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आ0

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  3. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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    1. हार्दिक आभार आ0

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  4. वाह!! प्रकृति की सुन्दरता का मनभावन वर्णन

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  5. आत्मीय आभार आपका

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