गीत
कहां छुपे तुम बैठ गए हो,हे गोकुल के नाथ।
आन विराजो सबके उर में,लिए तिरंगा हाथ।।
ग्वाल बाल के अंतस में दो,देश भक्ति की आग।
दिव्य रूप से नाश करो अब,सारे विषधर नाग।।
अखंडता के मूल मंत्र से, ऊँचा करना माथ।
आन विराजो..
खेल बिछा कर चौसर का नित,शकुनी पहने ताज।
घर बाहर के भितरघात से,तुम्हीं बचाओ लाज।।
राजनीति के धर्मयुद्ध में,देना माधव साथ ।।
आन विराजो...
दुशासन दुर्योधन से अब,हरो सुता की पीर।
गोप गोपियां गरिमा में रह,हो जाएं गंभीर।।
मातृभूमि का मान बढ़ाना,उन्हें सिखाओ नाथ
आन विराजो...
सेंक रहे सब अपनी रोटी,दूजे को कम आँक।
सत्य सारथी बन भारत के,रथ देना तुम हाँक।।
कीर्ति पताका लहरा कर नित,दूर करो सब क्वाथ।।
आन विराजो...
बंटवारे को पीड़ा देखी,फिर क्यों बंटते लोग।
आज़ादी के गूढ़ अर्थ का,नहीं समझते योग।।
विविध विचारों में एका रख,हमें बढ़ाना हाथ।
आन विराजो...
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