Sunday, June 14, 2020

तीली



#तीली
***
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्हीं जलाती काया।

ठाढ़े होकर कपास सोचती
बन जाऊँ  मैं बाती,
दीप शैया पर पहुरे पहुरे
घृत सारा पी जाती
इक आलिंगन करूँ तीली से
हुलसे  मेरी छाया
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।

मुख फैलाये दैत्य दहेज का
उर में अग्नि जलाता
तेल लोभ का बंद कमरों में
चिंगारी भड़काता
क्यों सुलगाती तीली स्वार्थ की
क्यों झुलसाती साया।
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।

कोमल काया बनती काष्ठ से
विस्फोटक को लादे
आहुति देना  अपने गात की
सोच समझ कर प्यादे
चीख सुनो उस अबला सुता की
नमक वहीं का खाया
तुम्हीं जलाती दीप मंदिर में,
तुम्ही जलाती काया।

अनिता सुधीर आख्या

6 comments:

  1. हृदयस्पर्शी सृजन,मार्मिक👌👌👌👌👌

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  2. ठाढ़े होकर कपास सोचती
    बन जाऊँ मैं बाती,
    दीप शैया पर पहुरे पहुरे
    घृत सारा पी जाती
    इक आलिंगन करूँ तीली से
    हुलसे मेरी छाया







    कोमल काया बनती काष्ठ से
    विस्फोटक को लादे
    आहुति देना अपने गात की
    सोच समझ कर प्यादे



    आहा। .बहुत ही मधुर भाषा शैली और बहुत प्यारीर रचना

    रचना के माध्यम से काफी गहरे भावो को उकेरा है

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  3. सुन्दर मधुर गीत ... मन को हिलोयें देता हुआ ...

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  4. वाह ......बहुत सुन्दर।

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