दोहा छन्द
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सोंधी माटी गाँव की,वो खेतों की मेड़ ।
रचा बसा है याद में,वो बरगद का पेड़।।
अथक परिश्रम खेत में,कृषक हुआ जब क्लांत।
हरियाली तब गाँव की ,करे चित्त को शांत।।
झूले पड़ते नीम पर, झूले सखियाँ संग।
दृश्य निराला गाँव का,बिखरे अद्भुत रंग।।
ताल तलैया गाँव में ,वो आमों का बाग ।
जामुन महुआ तोड़ते,सुन कोयल की राग ।।
गाँव चले मजदूर अब,लेकर मन में आस।
विकसित लघु उद्योग हों,करना यही प्रयास।।
भारत गाँवो में बसे,पढ़ें बाल गोपाल।
बनें आत्म निर्भर सभी,लोग रहें खुशहाल।।
अनिता सुधीर आख्या
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-07-2020) को "चिट्टाकारी दिवस बनाम ब्लॉगिंग-डे" (चर्चा अंक-3749) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी आ0 हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 1 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह!सुंदर सृजन !
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteबहुत सुंदर शुभ भावना से ओतप्रोत दोहे
ReplyDeleteअनिता जी अनिता का आभार स्वीकार करें
Deleteबहुत सुंदर सृजन सखी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे ... गाँव से जुड़ी यादों का अच्छा संकलन ...
ReplyDeleteजी आ0 हार्दिक आभार
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