गजल
2122 2122 212
रतजगे वो इश्क़ के भी खूब थे ।
दिलजलों के अनकहे भी खूब थे।।
ख़्वाब पलकों पर सजाते जो रहे,
इश्क़ तेरे फलसफे भी खूब थे ।
अश्क आँखो से बहे थे उन दिनों
बारिशों के फायदे भी खूब थे ।
कब तलक हम साथ यों रहते यहाँ
दरमियाँ ये फासले भी खूब थे ।
जी रहे तन्हाई में हम क्यों यहाँ
आप के तो कहकहे भी खूब थे ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 21 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी रहे तन्हाई में हम क्यों यहाँ
ReplyDeleteआप के तो कहकहे भी खूब थे ।
.... बहुत-बहुत सुंदर गजल।।।।।
जी हार्दिक आभार
Deleteउम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteअश्क आँखो से बहे थे उन दिनों
ReplyDeleteबारिशों के फायदे भी खूब थे ।
–सुन्दर लेखन
आ0 सादर अभिवादन
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteजी आ0 हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर गज़ल प्रिय अनीता जी।
ReplyDeleteसादर।
श्वेता जी हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी आ0 हार्दिक आभार
Deleteबहुत बहुत सुन्दर मधुर ।
ReplyDeleteआ0 हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर सखी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteबङे दिनों में कहकहों की गूँज सुनी !
ReplyDeleteचेतना खंगाल गई ।
धन्यवाद ।
जी शुक्रिया
Deleteबेहद ख़ूबसूरत रचना,
ReplyDeleteउम्दा ।
ReplyDeleteजी शुक्रिया
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