*भारत बंद*
अब अहिंसा ये पुकारे
आज तुम भी वार करना
सत्य ने पौधा लगाया
झूठ आकर सींचता है
लहलहाई जो फसल है
वो गरल को खींचता है
जो हवा ने विष भरे हैं
पार कर उससे उबरना।।
अब अहिंसा ये...
ढीठता देखे तमाशा
जब खड़े गद्दार रहते
डगमगा ईमान चलती
खंजरों की मार सहते
अब नियति भी बोलती है
हार थक कर मत कहरना।।
अब अहिंसा ये...
अब सयानों को उबालो
जानते प्रतिवाद जो हैं
मूक बनकर क्यों बधिर हो
अब बजाना नाद जो है
तान चरखे ने उठाई
गीत गाता मत ठहरना।।
अब अहिंसा ...
अनिता सुधीर आख्या
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-12-2020) को "पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने" (चर्चा अंक- 3910) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार आ0
Deleteजी शुक्रिया
ReplyDeleteजी शुक्रिया
ReplyDeleteसमसामयिक बेहतरीन रचना।
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