Tuesday, June 13, 2023

न्याय

न्याय 


न्याय के मंदिर में 
आंखों पर पट्टी बांधे 
मैं न्याय की देवी .प्रतीक्षा रत  ...
कब मिलेगा न्याय सबको...
हाथ में तराजू और तलवार लिये
तारीखों पर  तारीख की 
आवाजें सुनती रहती हूँ ..
वो चेहरे देख नहीं पाती ,पर
उनकी वेदना समझ पाती हूँ
जो आये होंगे 
न्याय की आस में 
शायद कुछ गहने गिरवी रख 
वकील की फीस चुकाई होगी,
या  फिर थोड़ी सी जमीन बेच 
 बेटी के इज्जत की सुनवाई में 
बचा  सम्मान  फिर गवाया होगा
और मिलता क्या 
एक और तारीख ,
मैं न्याय की देवी प्रतीक्षा रत ....
कब मिलेगा इनको  न्याय...
सुनती हूँ
सच को दफन करने की चीखें
खनकते सिक्कों की आवाजें
वो अट्टहास  झूठी जीत का 
फाइलों में कैद  कागज के 
फड़फड़ाने की,
पथराई आँखो के मौन 
हो चुके शब्दों के कसमसाने की
शब्द भी स्तब्ध रह जाते 
सुनाई पड़ती ठक ठक !
कलम  के आवरण से 
निकलने की   बैचेनी
सुन लेती हूँ 
कब लिखे वो न्याय 
मैं न्याय की देवी  प्रतीक्षारत....
महसूस करती हूँ
शायद यहाँ  लोग 
काला पहनते होंगे 
जो अवशोषित करता होगा 
झूठ फरेब  बेईमानी
तभी मंदिर बनता जा रहा 
अपराधियों का अड्डा 
कब मिलेगा न्याय  और
कैसे मिलेगा न्याय 
जब सबूतों को 
मार दी  जाती गोली
मंदिर परिसर में 
मैं मौन पट्टी बांधे इंतजार में
कब मिलेगा न्याय..
जग के न्यायकर्ता को 
कौन और कब दे न्याय..

©anita_sudhir

No comments:

Post a Comment

विज्ञान

बस ऐसे ही बैठे बैठे   एक  गीत  विज्ञान पर रहना था कितना आसान ,पढ़े नहीं थे जब विज्ञान । दीवार धकेले दिन भर हम ,फिर भी करते सब बेगार। हुआ अँधे...