पनिहारन
लिए भार मटकी का चलती
कोस अढ़ाई पनिहारन
धरा तरसती अब बूँदों को
हुआ वक्ष उसका खाली
जीव जगत तब व्याकुल रोया
कहाँ गया उसका माली
तपी दुपहरी कूप खोदते
आज कागजों में चारन
लिए भार मटकी का चलती
कोस अढ़ाई पनिहारन
जूठे वासन आँगन देखें
सास देखती अब चूल्हा
रिक्त पतीली बाट जोहती
कौन पकाएगा सेल्हा
तपिश सूर्य से दग्ध हुई वो
ज्येष्ठ धूप में बंजारन
लिए भार मटकी का चलती
कोस अढ़ाई पनिहारन
नुपुर चरण को जब तब छेड़े
पाँव बचाते पत्थर तब
भरी गगरिया छलक रही जो
बहा परिश्रम झर झर तब
नीर उमड़ता जो नयनों से
कहे कहानी कुल तारन
लिए भार मटकी का चलती
कोस अढ़ाई पनिहारन
अनिता सुधीर आख्या
पनिहारन की व्यथा। मार्मिक
ReplyDeleteDhanywaad
Deleteअच्छा वर्णन किया है।👍
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteहार्दिक आभार आ0
ReplyDeleteमार्मिक चित्रण। हार्दिक बधाई 🙏
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
वाह। बहुत सुंदर रचना सखी अनीता जी।
ReplyDeleteधन्यवाद सखि सुजाता जी
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteभावपूर्ण सुंदर चित्रण
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteमर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteएक पनिहारिन के जीवन शैली का बहुत सुंदर चित्रण 👏👏👏🌹🌹
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सरोज जी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी रचना 💐🙏🏼
ReplyDeleteधन्यवाद दीप्ति जी
Deleteमार्मिक व्यथा
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteजी सादर आभार
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आ0
Deleteअत्यंत हृदयस्पर्शी🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गुंजित
Deleteनुपुर चरण को जब तब छेड़े
ReplyDeleteपाँव बचाते पत्थर तब
भरी गगरिया छलक रही जो
बहा परिश्रम झर झर तब
नीर उमड़ता जो नयनों से
कहे कहानी कुल तारन
लिए भार मटकी का चलती
कोस अढ़ाई पनिहारन
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी चित्रण
वाह!!!!
ReplyDeleteलाजवाब नवगीत अद्भुत बिम्ब एवं प्रतिमानसे सजा बहुत ही भावपूर्ण एवं उत्कृष्ट।
बेहद खूबसूरत।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
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