Friday, September 15, 2023

बस यूँ ही


अतुकांत 


कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा

भानुमति ने कुनबा जोड़ा

सबके हाथ पाँव फूले हैं,

दोस्ती में आँखे फेरे हैं।

जो फूटी आँख नहीं सुहाते 

वो अब आँखों के तारें हैं।

कब कौन किस पर आँख दिखाये

कब कौन कहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाए

विपत्तियों का पहाड़ है

 गरीबी मे आटा गीला हो जाए।

बंदरबांट चल रही 

अंधे के हाथ बटेर लगी 

पुराने गिले शिकवे भूले हैं 

उलूक सीधे कर रहे  

उधेड़बुन में पड़े

उल्टी गंगा बहा रहे

जो एक आँख भाते नहीं 

वो एक एक ग्यारह हो रहे

कौन किसको ऊँगली पर नचायेगा

कौन एक लाठी से हाँक पायेगा

ढाई दिन की बादशाहत है 

टाएँ टाएँ फिस्स मत होना ।

दाई से पेट क्या छिपाना 

बस पुराना इतिहास मत दोहराना।


अनिता सुधीर

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